
देहरादून: भारत-चीन सीमा पर बसे उत्तराखंड के कई पहाड़ी गांवों में इस साल ग्रामीण अभी तक अपने पैतृक घरों में ही टिके हुए हैं। आम तौर पर सर्दियों की शुरुआत होते ही ये ग्रामीण अपने गांव छोड़कर नीचे के क्षेत्रों में चले जाते थे। लेकिन इस साल ऐसा नहीं हुआ।
विशेषज्ञों और प्रशासन के अनुसार इस बदलाव की मुख्य वजह केंद्र सरकार की ‘वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम’ और स्थानीय प्रशासन द्वारा लागू नई योजनाएं हैं। इन पहाड़ी गांवों में अब बेहतर सड़कें, स्वास्थ्य सुविधा, बिजली, रोजगार और पर्यटन के अवसर उपलब्ध हैं। इसके चलते ग्रामीणों को सर्दियों में गांव छोड़ने की आवश्यकता महसूस नहीं हो रही है।
सीजनल माइग्रेशन में बदलाव:
भारत-चीन सीमा के गमशाली, माना, नीति जैसे गांवों में कई परिवारों ने अब सर्दियों में पलायन की परंपरा को छोड़कर स्थानीय पर्यटन, होमस्टे और महिला स्वयं सहायता समूह जैसी पहल शुरू कर दी हैं। इससे ग्रामीण अपनी संस्कृति, इतिहास और पारिवारिक जड़ों से जुड़े हुए रहकर स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं।
सरकारी पहल और सुविधाएं:
सरकार और प्रशासन ने इन गांवों में मॉडल गांवों का विकास, नई सड़कें और जरूरी सामग्री की आपूर्ति सुनिश्चित की है। इससे ग्रामीणों का आत्मविश्वास बढ़ा है और वे अपने गांव में रहकर आर्थिक गतिविधियों में सक्रिय हैं।
सकारात्मक प्रभाव:
पहले जहां भारी बर्फबारी, बिजली और चिकित्सा की कमी के कारण सर्दियों में ग्रामीण पलायन करते थे, अब बेहतर सुविधाओं और पर्यटन से आय बढ़ने के कारण लोग अपने गांवों में ही टिके हुए हैं। यह बदलाव स्थानीय जीवन, सीमा सुरक्षा और भारत-चीन सीमा पर नागरिक उपस्थिति दोनों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो रहा है।
इस तरह, उत्तराखंड के सीमावर्ती गांवों में इस साल सर्दियों का मौसम ग्रामीणों के लिए विकास और स्थायित्व का प्रतीक बन गया है।