नई दिल्ली। मिर्गी यानी एपिलेप्सी के इलाज में भारत की तकनीकी प्रगति ने एक और अंतरराष्ट्रीय उपलब्धि हासिल की है। दिल्ली AIIMS के न्यूरोसर्जनों द्वारा विकसित अत्याधुनिक ROTCH तकनीक अब विदेशों में भी नई उम्मीद बन रही है। इजरायल के डॉक्टरों ने एम्स से ट्रेनिंग लेने के बाद पहली बार इस तकनीक का उपयोग करते हुए 12 साल की एक बच्ची की सफल सर्जरी कर दुनिया के सामने भारतीय चिकित्सा कौशल का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया है।
इजरायल में पहली ROTCH सर्जरी, बच्ची की जिंदगी में लौटी मुस्कान
20 नवंबर 2025 को तेल अवीव मेडिकल सेंटर में प्रो. जोनाथन रोथ और प्रो. ईडो स्ट्रॉस ने इस तकनीक का इस्तेमाल कर ऑपरेशन किया। सर्जरी से पहले बच्ची बोलने में असमर्थ थी और शरीर का दायां हिस्सा बिल्कुल काम नहीं कर रहा था। हैरानी की बात यह है कि ऑपरेशन के अगले ही दिन वह सामान्य रूप से बोलने लगी और उसके दाईं ओर के हिस्से में मूवमेंट भी वापस लौट आई। डॉक्टरों के अनुसार, सर्जरी के बाद उसे एक भी दौरा नहीं पड़ा।
इजरायली डॉक्टरों ने एम्स की टीम—विशेष रूप से प्रो. सरत चंद्रा—के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह सहयोग साबित करता है कि ज्ञान और तकनीक का आदान–प्रदान दुनिया भर के मरीजों के लिए जीवनरक्षक साबित हो सकता है।
भारत के लिए गर्व का पल
प्रो. सरत चंद्रा ने कहा कि यह क्षण पूरे देश के लिए गर्व का है। उन्होंने बताया कि अब तक भारतीय डॉक्टर प्रशिक्षण के लिए इजरायल जाते थे, लेकिन आज इजरायल एम्स की तकनीक को अपना रहा है। विश्व में लगभग 5 करोड़ लोग एपिलेप्सी से जूझ रहे हैं, जिनमें से 12 प्रतिशत भारत में हैं। करीब 25% मरीज दवाओं से ठीक नहीं होते और उन्हें सर्जरी की जरूरत पड़ती है, लेकिन पारंपरिक ऑपरेशन छोटे बच्चों के लिए अधिक जोखिम भरे होते हैं।
एम्स की तकनीक ने बदल दिया इलाज का तरीका
एम्स की न्यूरोलॉजी प्रमुख प्रो. मंजरी त्रिपाठी ने बताया कि एम्स का सर्जिकल प्रोग्राम दुनिया के सबसे अग्रणी कार्यक्रमों में शामिल है। उन्होंने कहा कि इस बीमारी पर पूरी तरह नियंत्रण पाने के लिए वैश्विक सहयोग जरूरी है और यह खुशी की बात है कि इजरायल अब एम्स के अनुभव का लाभ उठा रहा है।
क्या है ROTCH तकनीक?
ROBOTIC THERMOCOAGULATIVE HEMISPHEROTOMY (ROTCH) एक माइक्रो–कट आधारित तकनीक है, जिसे प्रो. पी. सरत चंद्रा ने विकसित किया है।
- इसमें बड़े चीरे की आवश्यकता नहीं होती
- खून बहने, संक्रमण और जटिलताओं का जोखिम बेहद कम
- सर्जरी की लागत पारंपरिक तरीकों की तुलना में काफी कम
- अब तक करीब 50 बच्चों पर इस तकनीक से सफल सर्जरी हो चुकी है
एपिलेप्सी के उपचार में यह तकनीक दुनिया भर के लिए एक नया मानक स्थापित कर रही है और भारत को वैश्विक चिकित्सा जगत में नई पहचान दिला रही है।