
नई दिल्ली: चीन में गिग वर्कर्स की संख्या लगातार बढ़ रही है। फैक्ट्रियों के देश के रूप में मशहूर चीन अब गिग इकोनॉमी के लिए जाना जाने लगा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 14 घंटे की लंबी शिफ्ट और प्रति डिलीवरी मात्र 1 डॉलर की कमाई के बावजूद लोग मजबूरी में इस काम को अपना रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह सिर्फ गिग वर्कर्स की बढ़ती संख्या ही नहीं, बल्कि चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी और पारंपरिक नौकरियों की कमी का भी संकेत है। गिग वर्क लोगों को फ्लेक्सिबिलिटी देता है, लेकिन इसके साथ ही यह कम वेतन, नौकरी की असुरक्षा और तनावपूर्ण माहौल का भी संदेश देता है।
चीन में फ्रीलांसिंग, फूड डिलीवरी, राइड-हेलिंग और लाइवस्ट्रीमिंग जैसे काम तेजी से बढ़ रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राइड-हेलिंग ड्राइवरों की संख्या 2024 तक तीन गुना बढ़कर 75 लाख हो गई, जबकि राइड्स में केवल 60% की वृद्धि हुई। कई लोग कम वेतन और लंबे काम के घंटे होने के बावजूद इस काम को इसलिए चुन रहे हैं क्योंकि इसमें प्रवेश आसान है और इसे वे अपने समय के अनुसार कर सकते हैं।
एंट ग्रुप और अन्य रिसर्च संस्थानों के ताजा सर्वे के मुताबिक, प्लेटफॉर्म-आधारित गिग वर्कर्स औसतन सप्ताह में 54 घंटे काम करते हैं और मासिक आय लगभग 730 डॉलर है। हालांकि, नौकरी की सुरक्षा न के बराबर है और स्वास्थ्य या अन्य लाभ बहुत कम मिलते हैं। 2023 में लगभग 12,000 ट्रैफिक हादसे फूड डिलीवरी वर्कर्स से जुड़े थे, यानी औसतन हर दिन 33 हादसे।
भारत में भी गिग इकोनॉमी की चिंता:
भारत में गिग इकोनॉमी और लंबे काम के घंटे पर बहस तेज है। आम आदमी पार्टी (AAP) के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने हाल ही में चिंता जताई कि गिग वर्कर्स का शोषण हो रहा है। उन्होंने एक ब्लिंकिट डिलीवरी एजेंट का उदाहरण देते हुए बताया कि 15 घंटे काम करने के बाद उसे केवल 762.57 रुपये मिले, यानी प्रति घंटा 52.01 रुपये। चड्ढा ने इसे ‘गिग इकोनॉमी की सफलता’ नहीं बल्कि ‘प्रणालीगत शोषण’ बताया।
विशेषज्ञों का कहना है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था का निर्माण केवल कम वेतन और अत्यधिक काम के घंटे वाले कर्मचारियों पर आधारित नहीं होना चाहिए। समय की गुणवत्ता और वर्क-लाइफ बैलेंस पर ध्यान देना जरूरी है।
निष्कर्ष:
जैसे-जैसे चीन गिग वर्क पर अधिक निर्भर हो रहा है, इसकी सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ भी बढ़ रही हैं। भारत को भी गिग वर्कर्स के अधिकारों और सुरक्षित कार्य वातावरण की दिशा में नीतियाँ बनाने की जरूरत है।