Monday, December 8

बिहार चुनाव 2025: 176 उम्मीदवारों ने नहीं दिया आपराधिक रिकॉर्ड का ब्यौरा, चुनावी पारदर्शिता पर उठा बड़ा सवालरिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा, कई बड़े दलों के दावेदार शामिल

पटना: 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों से पहले उम्मीदवारों की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, कुल 612 उम्मीदवारों में से 176 उम्मीदवारों ने फॉर्म सी-7 में अपना आपराधिक रिकॉर्ड तक जमा नहीं किया। यह वही फॉर्म है जिसमें चल रहे आपराधिक मामलों की जानकारी देना कानूनी रूप से अनिवार्य है।

कौन-कौन हैं इस सूची में?

रिपोर्ट बताती है कि लगभग हर बड़े राजनीतिक दल के उम्मीदवारों ने यह जरूरी ब्यौरा छिपाया है। आंकड़े चौंकाने वाले हैं—

  • RJD – 8 उम्मीदवार
  • JDU – 12 उम्मीदवार
  • LJP (RV) – 12 उम्मीदवार
  • जन शक्ति जनता दल (तेज प्रताप यादव की पार्टी) – 28 उम्मीदवार
  • आप – 2 उम्मीदवार
  • जन सुराज – 1 उम्मीदवार

यह संख्या दिखाती है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद राजनीतिक दल पारदर्शिता को लेकर गंभीर नहीं हैं।

उम्मीदवारों का आपराधिक रिकॉर्ड भी भारी

एडीआर ने यह भी बताया कि जिन उम्मीदवारों ने जानकारी दी, उनमें से बड़ी संख्या आपराधिक मामलों का सामना कर रही है। कई मामलों में राजनीतिक दलों ने ऐसे उम्मीदवारों को टिकट देने के लिए ‘मजबूत जनाधार’ और ‘चुनावी क्षमता’ जैसे तर्क दिए हैं।

मिसाल के तौर पर—

  • मोकामा के एक उम्मीदवार, जिन पर 54 केस दर्ज हैं, उनके बारे में जेडीयू ने दावा किया कि “वह इलाके में सबसे लोकप्रिय और प्रभावी विकल्प हैं।”
  • मोतिहारी के एक उम्मीदवार, जिन पर 52 केस दर्ज हैं, RJD ने कहा कि “उनकी लोकप्रियता और जनता से जुड़ाव उनकी उम्मीदवारी की सबसे बड़ी वजह है।”

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी अनदेखी

13 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों को टिकट देने के कारणों को राजनीतिक दलों को सार्वजनिक करना अनिवार्य होगा।
लेकिन एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि इस आदेश को बड़े पैमाने पर नजरअंदाज किया जा रहा है।

चुनावी पारदर्शिता पर खतरे की घंटी

176 उम्मीदवारों द्वारा आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी न देना चुनावी प्रणाली की पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करता है। यह स्थिति न केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को चुनौती देती है, बल्कि मतदाताओं को सही जानकारी से भी वंचित करती है।

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