
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात ने भारत–रूस के दशकों पुराने रिश्तों को नई मजबूती दी है। दिल्ली एयरपोर्ट पर मोदी द्वारा पुतिन का किया गया गर्मजोशी भरा स्वागत न सिर्फ दोनों नेताओं की निजी केमिस्ट्री को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि अंतरराष्ट्रीय दबावों के बावजूद भारत–रूस साझेदारी अडिग है।
यह मुलाकात ऐसे समय हुई है जब भारत और अमेरिका एक बड़े व्यापार समझौते के अंतिम चरण में हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि पुतिन के साथ भारत की बढ़ती नजदीकी क्या अमेरिका और राष्ट्रपति ट्रंप को असहज कर सकती है?
पुतिन का अमेरिका पर सवाल: ‘उन्हें अधिकार है, तो भारत को क्यों नहीं?’
पश्चिमी देशों के दबाव के बीच पुतिन ने भारत के रूस से परमाणु ईंधन खरीदने के अधिकार पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि जब अमेरिका खुद रूसी परमाणु ईंधन खरीदता है, तो भारत को ऐसा करने से कौन रोक सकता है?
पुतिन ने एक इंटरव्यू में साफ कहा,
“अगर अमेरिका हमारा परमाणु ईंधन खरीद सकता है तो भारत को वही अधिकार क्यों नहीं मिलना चाहिए?”
रूसी राष्ट्रपति ने स्पष्ट किया कि रूस व्यापार विविधता बढ़ाकर भारत के साथ नए आयात–निर्यात अवसर मजबूत करना चाहता है।
अमेरिका के भारी-भरकम टैरिफ, फिर भी ट्रंप की मोदी की तारीफ
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीद के मुद्दे पर भारत पर 50% तक भारी शुल्क लगाए हैं। वॉशिंगटन का मानना है कि भारतीय खरीद रूस के युद्ध प्रयासों को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देती है।
इसके बावजूद ट्रंप ने कई बार मोदी की रणनीतिक समझ और भारत के महत्व की सार्वजनिक तारीफ की है। लेकिन भारत–रूस की बढ़ती निकटता अमेरिकी चिंताओं को कम नहीं करती।
वहीं भारत का कहना है कि अमेरिकी टैरिफ “अनुचित और अतार्किक” हैं, और स्वयं अमेरिका–यूरोप का रूस से अब भी भारी व्यापार जारी है।
भारत–रूस व्यापार लक्ष्य: 2030 तक 100 अरब डॉलर
दोनों देश 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने पर सहमत हैं।
2021 में यह आंकड़ा जहां 13 अरब डॉलर था, वहीं 2024–25 तक यह बढ़कर 69 अरब डॉलर तक पहुंच गया। हालांकि 2025 के शुरुआती महीनों में तेल आयात घटने से व्यापार में थोड़ी गिरावट दर्ज की गई।
रूस चाहता है कि भारत अपने:
- ऑटोमोबाइल
- इलेक्ट्रॉनिक्स
- भारी मशीनरी
- औद्योगिक उपकरण
- कपड़ा
- खाद्य उत्पाद
जैसे क्षेत्रों से निर्यात बढ़ाए, ताकि व्यापार संतुलित हो सके।
मोदी–पुतिन की मुलाकात का संदेश
दिल्ली में लाल कालीन पर दोनों नेताओं की मुलाकात और निजी रात्रिभोज ने एक बड़ा संदेश दिया—
भारत और रूस की दोस्ती न केवल स्थायी है, बल्कि दबावों से परे है।
मोदी ने पुतिन का स्वागत करते हुए कहा,
“भारत–रूस की दोस्ती पुरानी, मजबूत है और इससे दोनों देशों को लाभ हुआ है।”
पुतिन के साथ बड़ी रूसी व्यापारिक टीम का आना भी दर्शाता है कि दोनों देश रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी को नई गति देना चाहते हैं।
क्या अमेरिका नाराज होगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत–रूस और भारत–अमेरिका के सौदों को अलग–अलग नजरिए से देखा जाना चाहिए।
भारत किसी भी साझेदारी को दूसरे के खिलाफ नहीं देखता, बल्कि अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बनाए रखना चाहता है।
उद्योग विशेषज्ञ अजय सहाय कहते हैं,
“भारत–अमेरिका व्यापार समझौता और भारत–रूस सहयोग, दोनों अपनी जगह स्वतंत्र और महत्वपूर्ण हैं।”
निष्कर्ष
मोदी–पुतिन मुलाकात ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत अपने रणनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए संतुलित विदेश नीति जारी रखेगा।
अमेरिका हो या रूस—भारत अपनी स्वतंत्र भूमिका में साझेदारी मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
अब दुनिया की निगाह इस पर होगी कि अमेरिका इस “मजबूत मोदी–पुतिन केमिस्ट्री” को किस नजर से देखता है और इसका आगामी भारत–अमेरिका व्यापार समझौते पर क्या असर पड़ता है।