
पटना: बिहार के नए शिक्षा मंत्री सुनील कुमार के सामने इस बार सबसे बड़ी चुनौती है गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और नकल मुक्त परीक्षा प्रणाली सुनिश्चित करना। राज्य में शिक्षा की बदहाली, स्कूलों की बंद होती शाखाएं और कमजोर परीक्षा व्यवस्थाएं इस सरकार की बड़ी परीक्षा बन चुकी हैं।
शिक्षक-छात्र अनुपात और पूर्णकालिक शिक्षक
बिहार में अभी 63 छात्रों पर एक शिक्षक का औसत है, जो राष्ट्रीय मानकों से काफी ऊपर है। संविदा पर नियुक्त शिक्षकों की संख्या बढ़ाई जा रही है, लेकिन पूर्णकालिक शिक्षकों की कमी अभी भी चुनौती बनी हुई है। कम वेतन और नौकरी की असुरक्षा की वजह से संविदा शिक्षक पूरी लगन से पढ़ाने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं।
बंद हो रहे सरकारी स्कूल
राज्य में सरकारी स्कूल लगातार बंद हो रहे हैं। अनुमान है कि बिहार में अब तक 4,500 स्कूल बंद हो चुके हैं, जबकि 8,000 स्कूल बंद करने के लिए चिन्हित किए गए हैं। जिला स्तर पर बंद होने के कारण समग्र डेटा का आकलन मुश्किल हो रहा है।
नकल मुक्त परीक्षा: सबसे बड़ी चुनौती
बोर्ड परीक्षाओं में नकल और पेपर लीक की घटनाओं ने बिहार की शिक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं। शिक्षा मंत्री सुनील कुमार के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है कि साफ-सुथरी और भरोसेमंद परीक्षा प्रणाली लागू की जाए।
अपर्याप्त स्कूल भवन और सुविधाएं
कई सरकारी स्कूलों में कक्षाओं, बिजली, शौचालय और साफ पेयजल की कमी है। स्कूल भवनों की गुणवत्ता अक्सर खराब है, जिससे बच्चों का पढ़ाई का माहौल प्रभावित होता है। ग्रामीण स्कूलों में आधुनिक प्रयोगशालाओं और पुस्तकालयों का अभाव है, जिससे प्रैक्टिकल शिक्षा नहीं हो पाती।
शिक्षा में सुधार के संकेत
ASER 2024 रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में कक्षा-5 के छात्रों की पढ़ाई का स्तर 41.2% है, जो 2022 में 37.1% था। अंकगणित में सुधार हुआ है, लेकिन कक्षा-2 और कक्षा-3 में पढ़ाई की गति अभी भी धीमी है। निजी स्कूलों में सीखने का स्तर बेहतर है, जबकि सरकारी स्कूलों में सुधार की जरूरत बनी हुई है।
मंत्री सुनील कुमार के लिए चुनौती
शिक्षा मंत्री के सामने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, पर्याप्त शिक्षक, स्कूल भवन, पेयजल, शौचालय और भोजन व्यवस्था जैसे मसलों पर गंभीर कदम उठाने की चुनौती है। इसके बिना बच्चों की शिक्षा में सुधार और बिहार को सुशिक्षित राज्य बनाने का सपना अधूरा रहेगा।