
नई दिल्ली/पटना : बिहार की सियासत में करीब 30 वर्षों से प्रभावी माने जाने वाले आरजेडी के मुस्लिम–यादव (MY) समीकरण को इस विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा झटका लगा है। 1990 के दशक से जिस गठजोड़ पर लालू प्रसाद यादव की राजनीति टिकी रही, वह इस बार मुस्लिम बहुल सीटों पर पूरी तरह बिखरता दिखा। सीमांचल की पांच प्रमुख सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने रिकॉर्ड जीत हासिल कर आरजेडी के इस पारंपरिक वोट बैंक में गहरी सेंध लगा दी है। वहीं एनडीए ने भी मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों पर अपनी पिछली संख्या को दोगुना कर नया राजनीतिक संकेत दिया है।
सीमांचल में ओवैसी ने जमाई जोरदार पकड़
मुस्लिम आबादी 40% से अधिक वाले सीमांचल की पाँच सीटों—
बैसी, जोकीहाट, बहादुरगंज, कोचाधामन और अमौर —
पर एआईएमआईएम ने भारी अंतर से जीत दर्ज की है। इन सीटों पर हारने वालों में महागठबंधन और जेडीयू के प्रत्याशी भी शामिल हैं, जबकि एक सीट पर बीजेपी के हिंदू उम्मीदवार को भी हार का सामना करना पड़ा।
ओवैसी की पार्टी ने उन सात सीटों पर भी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई, जहाँ मुस्लिम आबादी 25–40% के बीच है। हैरानी की बात यह है कि ये सभी सीटें एनडीए के खाते में गईं। सीमांचल में सिर्फ कांग्रेस ने किशनगंज में एक सीट बचाई, जबकि आरजेडी और वाम दल अपना खाता भी नहीं खोल सके।
मुस्लिम बहुल सीटों पर NDA की सीटें दोगुनी
टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में कुल 52 मुस्लिम प्रभाव वाली सीटें हैं।
- 2020 में एनडीए को 20 सीटें मिली थीं (वोट शेयर 34.8%)
- 2025 में यह संख्या बढ़कर 39 सीटें हो गई (वोट शेयर 42.2%)
यह बदलाव सिर्फ सीमांचल तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे बिहार के मुस्लिम प्रभाव वाले इलाकों में दिखा है। यह संकेत है कि मुसलमान अब MY समीकरण से बाहर निकलकर नए विकल्पों को भी महत्व देने लगे हैं।
2020 में शुरू हुई थी बदलाव की शुरुआत
ओवैसी की पार्टी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में पहली बार सीमांचल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी और पाँच सीटें जीती थीं। तब कई दलों ने एआईएमआईएम को बीजेपी की “बी-टीम” कहकर प्रचार किया, लेकिन इसके बावजूद पार्टी ने शुरुआती सफलता पाई। हालांकि बाद में चार विधायक आरजेडी में चले गए, लेकिन तब से मुस्लिम मतदाताओं के राजनीतिक झुकाव में बदलाव शुरू हो चुका था।
क्यों टूटा MY समीकरण?
विश्लेषकों के अनुसार इस बार के चुनाव ने यह साफ कर दिया है कि —
- बिहार के मुसलमान कथित सेक्युलर दलों से निराश हैं।
- उन्हें लगता है कि महागठबंधन सहित कई दल प्रतिनिधित्व देने के मामले में कमजोर पड़ते रहे हैं।
- आरजेडी पर यह आरोप भी लगा कि उसने मुसलमानों के नेतृत्व को उभरने नहीं दिया।
- उसी बीच ओवैसी ने मुसलमानों के बीच “अपनी पार्टी” होने का दावा कर मजबूत पकड़ बनाई।
सबसे अहम बात यह है कि मुस्लिम वोटरों के मन से बीजेपी की जीत का डर भी काफी हद तक कम हुआ है। वे अब “सेक्युलर वोट कट जाएगा” वाली सोच से आगे बढ़कर नए राजनीतिक जोखिम लेने के लिए तैयार दिख रहे हैं।
बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव
सीमांचल में एआईएमआईएम की जीत और मुस्लिम बहुल सीटों पर एनडीए की बढ़ी पकड़ ने बिहार की सियासत में बड़े परिवर्तन का संकेत दे दिया है।
तीन दशक तक जिस MY समीकरण को अटूट माना गया था, वह अब टूट चुका है।
आने वाले चुनावों में यह बदलाव सिर्फ आरजेडी ही नहीं, बल्कि पूरे विपक्ष के लिए नई चुनौतियां पैदा करने वाला साबित हो सकता है।