
दुबई/रियाद: सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के रिश्ते अब तक के सबसे बड़े तनाव का सामना कर रहे हैं। यमन में UAE से जुड़े हथियारों की खेप पर सऊदी लड़ाकू विमानों के हमले के बाद दोनों देशों के बीच दरारें सार्वजनिक हो गई हैं। कभी मुस्लिम दुनिया में दोस्ती की मिसाल रहे ये देश अब आपसी हितों और रणनीतिक मतभेदों के चलते टकराव में हैं।
सम्बंधों की प्रमुख घटनाएं:
2011: अरब स्प्रिंग के दौरान दोनों देशों ने इस्लामी आंदोलनों के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाया। बहरीन विद्रोह को दबाने और मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड सरकार को हटाने में एक-दूसरे का समर्थन किया।
मार्च 2015: ईरान समर्थित हूतियों के खिलाफ यमन में सैन्य अभियान शुरू, UAE जमीनी और सऊदी वायु सेना हवाई हमलों का नेतृत्व।
जून 2017: कतर का बहिष्कार; आतंकवाद समर्थन के आरोप और सऊदी-यूएई नेतृत्व संबंध मजबूत।
2019: UAE ने यमन से सैनिक वापस बुलाए और दक्षिणी संक्रमणकालीन परिषद (STC) के माध्यम से प्रभाव बनाए रखा।
सितंबर 2020: UAE ने अब्राहम समझौते के तहत इजरायल के साथ संबंध सामान्य किए; सऊदी अरब ने फिलिस्तीनी राष्ट्र की मांग पर जोर दिया और ऐसा करने से इनकार किया।
जनवरी 2021: अल-उला शिखर सम्मेलन; UAE ने अनिच्छा से कतर विवाद सुलझाया।
फरवरी-जुलाई 2021: आर्थिक और व्यापारिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ी; सऊदी अरब ने दुबई के वाणिज्यिक प्रभुत्व और OPEC सौदों पर चुनौती दी।
अप्रैल 2023: सूडान युद्ध में सऊदी ने सेना का समर्थन किया, UAE पर प्रतिद्वंद्वी बलों को हथियार देने का आरोप।
8 दिसंबर 2025: यमन में UAE समर्थित STC ने हद्रामौत के तेल क्षेत्रों पर कब्जा किया, जो सऊदी की “रेड लाइन” थी।
30 दिसंबर 2025: सऊदी अरब के लड़ाकू विमानों ने मुकल्ला में एक जहाज पर हमला किया, जो अलगाववादियों को भारी हथियार पहुंचा रहा था। यह पहली बार था जब दोनों देशों के हितों के बीच सीधी टकराहट सामने आई।
विशेषज्ञों का कहना है: “सऊदी और UAE का रिश्ता अब सिर्फ रणनीतिक सहयोग तक सीमित नहीं रहा। आर्थिक, राजनीतिक और क्षेत्रीय हितों के टकराव ने दोनों देशों को खाई में ला खड़ा किया है।”