
सरगुजा/अंबिकापुर। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किए गए हालिया प्रशासनिक फेरबदल के तहत आईएएस अजीत बसंत ने अंबिकापुर में सरगुजा जिले के 53वें कलेक्टर के रूप में पदभार ग्रहण कर लिया है। कार्यभार संभालते ही उन्होंने प्रशासनिक गतिविधियों की समीक्षा शुरू कर दी और अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए कि सभी सरकारी योजनाओं को जमीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू किया जाए, ताकि आमजन को वास्तविक लाभ मिल सके।
बिहार के मधुबनी से प्रशासनिक सेवा तक
आईएएस अजीत बसंत बिहार के मधुबनी जिले के मूल निवासी हैं। उनका जन्म 20 जनवरी 1987 को हुआ। उनके पिता लेक्चरर थे, जिससे घर में शिक्षा का माहौल शुरू से ही मजबूत रहा। बचपन से ही मेधावी रहे अजीत बसंत ने 12वीं के बाद इंजीनियरिंग करने का विचार किया था, लेकिन बाद में उन्होंने अपना लक्ष्य बदल लिया। उनके दादा और पिता का सपना था कि परिवार से कोई सदस्य सिविल सेवा में जाए। इसी प्रेरणा से उन्होंने हिस्ट्री ऑनर्स में स्नातक (बीए) करने का निर्णय लिया और साथ ही यूपीएससी की तैयारी शुरू की।
नौकरी के साथ की UPSC की तैयारी
यूपीएससी की तैयारी से पहले अजीत बसंत ने SSC CGL परीक्षा पास की। इसके जरिए वे दिल्ली में असिस्टेंट अकाउंट ऑफिसर और सेक्शन ऑफिसर के पद पर नियुक्त हुए। नौकरी के दौरान भी उन्होंने सिविल सेवा की तैयारी जारी रखी। वर्ष 2010 में उन्होंने पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी। प्रीलिम्स में सफलता मिली, लेकिन मेन्स परीक्षा में वे सफल नहीं हो सके। पहली असफलता से निराश होने के बजाय उन्होंने अपनी रणनीति को और मजबूत किया।
दूसरी कोशिश में हासिल की सफलता
लगातार मेहनत और आत्मविश्वास के साथ अजीत बसंत ने वर्ष 2012 में दूसरी बार यूपीएससी परीक्षा दी। इस बार उन्होंने प्रीलिम्स, मेन्स और साक्षात्कार—तीनों चरणों को सफलतापूर्वक पार किया। इसके साथ ही वे छत्तीसगढ़ कैडर के 2013 बैच के आईएएस अधिकारी बने।
प्रशासनिक अनुभव और उपलब्धियां
आईएएस के रूप में उनका प्रशासनिक सफर उल्लेखनीय रहा है। उनकी पहली पोस्टिंग राजनांदगांव जिले के मोहला-मानपुर में एसडीएम के रूप में हुई। इसके बाद उन्होंने जांजगीर-चांपा में जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) के रूप में सेवाएं दीं। भू-राजस्व विभाग में कार्य करने के साथ ही वे गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में अपर कलेक्टर और फिर राजनांदगांव में जिला पंचायत सीईओ रहे।
कलेक्टर के रूप में प्रभावशाली कार्य
कलेक्टर के तौर पर उनकी पहली नियुक्ति नारायणपुर जिले में हुई, जहां अबूझमाड़ जैसे दुर्गम आदिवासी क्षेत्रों में उन्होंने विकास कार्यों को नई गति दी। इसके बाद कोरबा जिले के कलेक्टर रहते हुए उन्होंने एक लाख से अधिक बच्चों के लिए सरकारी स्कूलों में प्रतिदिन नाश्ता योजना की शुरुआत की। कोरबा छत्तीसगढ़ का पहला जिला बना, जहां यह योजना लागू हुई।