
इस्लामाबाद: पाकिस्तान में लंबे समय से टली हुई नए प्रांत बनाने की बहस अब तेजी पकड़ रही है। शहबाज शरीफ सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए छोटे प्रांत बनाने का प्रस्ताव रखा है, जिससे प्रशासनिक नियंत्रण मजबूत होगा और नागरिकों को बेहतर सेवाएं मिलेंगी।
सरकार में मंत्री अब्दुल अलीम खान ने कहा,
“सिंध, पंजाब, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा से तीन-तीन छोटे प्रांत बनाए जाएंगे। हमारे पड़ोसी देशों में छोटे प्रांत सफल रहे हैं, हमें भी यह मॉडल अपनाना चाहिए।”
हालांकि, सत्ता सहयोगी और पीपीपी चेयरमैन बिलावल भुट्टो इस योजना से असंतुष्ट हैं। उन्होंने कहा कि सबसे पहले साउथ पंजाब को अलग प्रांत बनाया जाए और फिर आगे बढ़ें। पीपीपी ने पारंपरिक रूप से सिंध के विभाजन का विरोध किया है और बिलावल का यह बयान सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि नए प्रांत बनाने के पीछे सेना प्रमुख असीम मुनीर की रणनीति भी हो सकती है। पाकिस्तान के कई हिस्सों में, खासतौर से बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वां में विरोध बढ़ रहा है। ऐसे में सत्ता का विकेंद्रीकरण सेना और सरकार दोनों के लिए विरोध को नियंत्रित करने का तरीका हो सकता है।
सरकार खासतौर से उन प्रांतों पर ध्यान दे रही है, जहां राजनीतिक अस्थिरता अधिक है। लेकिन कई विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बिना जमीनी समस्याओं को हल किए केवल नए प्रांत बनाने से अराजकता और अस्थिरता बढ़ सकती है।
सीनियर ब्यूरोक्रेट सैयद अख्तर अली शाह कहते हैं,
“पाकिस्तान की समस्या बड़े प्रांतों में नहीं, बल्कि कमजोर संस्थाओं, भ्रष्ट शासन और लोकतांत्रिक जवाबदेही की कमी में है। नए प्रांत बनाने से मूल समस्याएं हल नहीं होंगी।”
राजनीतिक विश्लेषक अहमद बिलाल महबूब का कहना है कि यह कदम केवल सरकार और सेना के शीर्ष नेतृत्व के सत्तावादी इरादों को मजबूत करने का राजनीतिक स्टंट लग रहा है और भविष्य में इससे देश में और विरोध बढ़ने की संभावना है।
पाकिस्तान में नया राजनीतिक समीकरण बनने की दिशा में यह कदम अब पूरे देश की नजरों में है।