
6 नवम्बर 2025 को बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में मतदान होने जा रहा है। इस बार दांव बहुत बड़ा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि नीतीश कुमार के दो दशकों के शासनकाल में बिहार ने आधारभूत ढांचे और सुशासन के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। लेकिन असली चुनौती अब यह है कि इन उपलब्धियों को किस प्रकार गुणवत्तापूर्ण रोजगार, बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं और तीव्र मानव विकास में बदला जाए। अगर बिहार को विकास के नए पायदान पर पहुंचना है, तो आने वाली सरकार को “इनपुट” की जगह “आउटकम” पर ध्यान केंद्रित करना होगा — वरना एक और मौका हाथ से निकल जाएगा।
मंच तैयार है — लेकिन उड़ान अभी बाकी
यह सच है कि बिहार ने प्रगति की है। राज्य की विकास दर में सुधार हुआ है, सड़कों का जाल बिछा है, गांव-गांव बिजली पहुंची है और निवेशकों की रुचि भी बढ़ी है। परंतु यह सब बहुत ही निम्न स्तर से शुरू हुआ है। नीति आयोग के एसडीजी इंडिया इंडेक्स 2023-24 के अनुसार, बिहार अब भी शिक्षा, स्वास्थ्य, जल एवं स्वच्छता और आजीविका जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में देश के बड़े राज्यों में पिछड़े राज्यों की श्रेणी में आता है।
हालांकि हाल के वर्षों में बेरोजगारी दर घटकर लगभग 3 प्रतिशत रह गई है, लेकिन यह आंकड़ा वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाता। महिलाओं की श्रम भागीदारी अब भी बहुत कम है, रोजगार का बड़ा हिस्सा असंगठित और अस्थायी क्षेत्र में है, और स्थायी व औपचारिक नौकरियों की भारी कमी बनी हुई है।
लाखों के लिए रोजगार, सिर्फ कुछ के लिए नहीं
राज्य सरकार की हालिया औद्योगिक नीतियों के बावजूद बिहार में निवेश अब भी सीमित है। औद्योगिक क्लस्टर और कारोबारी केंद्र बन रहे हैं, परंतु वास्तविक निवेश और विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार सृजन बहुत कम है। वास्तविक परिवर्तन तभी संभव है जब सरकार सड़कों और बिजली जैसे हार्डवेयर को कौशल विकास, उद्यमिता और रोजगार सृजन जैसे सॉफ्टवेयर से जोड़ सके।
वित्तीय नीति और निवेश की दिशा अब निर्णायक
राज्य के राजस्व में वृद्धि हुई है, लेकिन इसके साथ देनदारियां, वेतन और पेंशन का बोझ भी बढ़ा है। बजट का एक बड़ा हिस्सा हर साल खर्च न हो पाने के कारण वापस लौट जाता है। इसलिए नई सरकार को अपने वित्तीय संसाधनों का उपयोग अधिक रणनीतिक तरीके से करना होगा — ऐसा पूंजीगत निवेश जो रोजगार पैदा करे, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) के माध्यम से अधिक प्रभावी परिणाम दे और यह सुनिश्चित करे कि कोई भी निधि व्यर्थ न जाए।
मूलभूत क्षेत्रों पर ध्यान देना जरूरी
सड़क और बिजली के बाद अब ध्यान शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और सामाजिक समावेशन पर होना चाहिए। नीति आयोग के आंकड़े बताते हैं कि इन क्षेत्रों में बिहार की स्थिति अब भी चिंताजनक है। इसलिए जरूरत है लक्षित योजनाओं, पारदर्शिता और परिणाम आधारित दृष्टिकोण की, न कि केवल घोषणाओं की।
आने वाली सरकार के लिए 10 सूत्रीय एजेंडा
बिहार की आने वाली सरकार एसडीजी आधारित ओपन डैशबोर्ड बनाए, जिससे रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य के नतीजे सार्वजनिक रूप से ट्रैक किए जा सकें।
पूंजीगत निवेश को श्रम