
ढाका/नई दिल्ली। बांग्लादेश इस समय गंभीर राजनीतिक उथल-पुथल और अराजकता के दौर से गुजर रहा है। हाल के महीनों में जिस छात्र आंदोलन को देश के भीतर सरकारी नीतियों के खिलाफ जन-आंदोलन के रूप में देखा जा रहा था, अब उसके पीछे बाहरी ताकतों की भूमिका के संकेत मिल रहे हैं। यह भी आशंका जताई जा रही है कि इस पूरे घटनाक्रम का उद्देश्य पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को राजनीतिक रूप से खत्म करना ही नहीं, बल्कि उनकी हत्या करवाना भी हो सकता है।
छात्र आंदोलन या बाहरी पटकथा?
ढाका की सड़कों पर कोटा सिस्टम के विरोध में उठी छात्रों की आवाजें शुरुआत में स्थानीय असंतोष का परिणाम मानी गईं, लेकिन जांच और विश्लेषण के बाद तस्वीर बदलती दिख रही है। सूत्रों के अनुसार आंदोलन की स्क्रिप्ट ढाका यूनिवर्सिटी के कैंपस में नहीं, बल्कि विदेश में लिखी गई। इसके तार कट्टरपंथी संगठनों से जुड़े बताए जा रहे हैं जिनका नेटवर्क रावलपिंडी और इस्लामाबाद से जुड़ता हुआ पश्चिमी देशों तक जाता है, जहां हाल ही में एक पाकिस्तानी जनरल का स्वागत हुआ था।
ट्रिब्यूनल का फैसला सवालों के घेरे में
ढाका के ट्रिब्यूनल ने छात्र आंदोलन के दमन का जिम्मा सीधे शेख हसीना पर डालते हुए उनके खिलाफ फैसले सुनाए। अभियोजन पक्ष का दावा है कि सरकार ने सुरक्षा बलों को घातक बल प्रयोग के आदेश दिए थे। हालांकि, सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है या किसी राजनीतिक पटकथा का परिणाम?
– मुकदमा 14 अगस्त को शुरू हुआ और 17 नवंबर को फैसला आ गया
– सिर्फ 20 दिन सुनवाई
– 84 में से केवल 54 गवाहों की गवाही
– मुख्य जज एक महीने से अनुपस्थित
– सुनवाई हसीना की अनुपस्थिति में, पक्ष रखने का मौका नहीं
कानूनी विशेषज्ञ इसे न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन मान रहे हैं।
क्या यह शेख हसीना को खत्म करने की साजिश?
विश्लेषकों का मानना है कि:
- गैर-निर्वाचित सरकार द्वारा निर्वाचित पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई
- सेना प्रमुख के खिलाफ कोई मामला नहीं
- हिंसा में मारे गए लोगों की उपेक्षा
यह दर्शाता है कि लक्ष्य न्याय नहीं, बल्कि शेख हसीना और उनकी पार्टी अवामी लीग को समाप्त करना है।
स्वयं शेख हसीना ने भी फैसले से पहले कहा था—
“यह ट्रायल एक कंगारू कोर्ट का नाटक है, जिसका फैसला पहले से लिखा जा चुका है।”
जमात-ए-इस्लामी की वापसी कैसे?
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य तंत्र कमजोर पड़ने के बाद नियंत्रण उस भीड़ के हाथ में चला गया जो विशेष वर्ग को निशाना बना रही थी। अचानक जमात-ए-इस्लामी, जो वर्षों से हाशिये पर थी, मजबूत होकर सामने आ गई। 85 वर्ष के एक बुजुर्ग नेता का सत्ता पर काबिज होना भी सवालों के घेरे में है।
अंदरूनी खेल या अंतरराष्ट्रीय एजेंडा?
विशेषज्ञों का दावा है कि यह घटनाक्रम अचानक नहीं हुआ। लंबे समय से पर्दे के पीछे साजिश रची जा रही थी, जिसका उद्देश्य था—
- शेख हसीना को सत्ता से हटाना
- अवामी लीग को कमजोर करना
- बांग्लादेश में कट्टरपंथी शक्तियों को स्थापित करना
- क्षेत्रीय भू-राजनीति को प्रभावित करना
अराजकता की गिरफ्त में बांग्लादेश
आज बांग्लादेश हिंसा, सत्ता संघर्ष और गहरी राजनीतिक साजिशों का केंद्र बना हुआ है। देश की स्थिरता पर खतरा मंडरा रहा है और शेख हसीना की जान को लेकर भी गंभीर आशंकाएं जताई जा रही हैं।
स्थिति कैसे बदलती है, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा, लेकिन इतना तय है कि बांग्लादेश इस समय अपने सबसे संवेदनशील दौर से गुजर रहा है।