
बीजिंग। चीन की सैन्य महत्वाकांक्षाओं ने एक बार फिर दुनिया को चौंका दिया है। लियाओनिंग प्रांत के डालियान शिपयार्ड से सामने आई नई तस्वीरों ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि चीन अपने पहले परमाणु ऊर्जा संचालित विमानवाहक पोत — ‘टाइप 004’ (Type 004 Aircraft Carrier) — पर तेज़ी से काम कर रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार यह परियोजना चीन की नौसेना शक्ति को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी और उसे अमेरिका के समकक्ष खड़ा कर देगी।
समंदर में ‘ड्रैगन’ की नई छलांग
सामने आई उपग्रह तस्वीरों में टाइप 004 के डेक पर रिएक्टर कंटेनमेंट जैसी संरचना देखी गई है, जो यह संकेत देती है कि यह पोत न्यूक्लियर प्रोप्लजन सिस्टम (परमाणु प्रणोदन प्रणाली) से संचालित होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि यह डिज़ाइन अमेरिकी फोर्ड श्रेणी के सुपरकैरियर से काफी हद तक मेल खाता है।
यह खुलासा ऐसे समय में हुआ है जब चीन ने हाल ही में अपना तीसरा विमानवाहक पोत ‘फुजियान’ समुद्र में उतारा है। अब चौथे जहाज के परमाणु ऊर्जा से संचालित होने की खबरों ने भारत, अमेरिका और अन्य एशियाई देशों की सुरक्षा चिंताएं बढ़ा दी हैं।
अमेरिका की निगाहें बीजिंग पर
अमेरिकी पेंटागन ने अपनी हालिया सैन्य रिपोर्ट में चीन के तेजी से बढ़ते नौसैनिक कार्यक्रम पर चिंता जताई है। रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के आने वाले विमानवाहक पोत पहले से कहीं अधिक टिकाऊ, दूरगामी और हमलावर क्षमता वाले होंगे।
हालांकि पेंटागन ने सीधे तौर पर परमाणु पोत का ज़िक्र नहीं किया है, परंतु खुफिया सूत्रों के अनुसार चीन की “ड्रैगन माइट परियोजना” सिचुआन प्रांत के लेशान क्षेत्र में स्थित है, जहां एक बड़े सतही युद्धपोत के लिए भूमि-आधारित परमाणु रिएक्टर का परीक्षण चल रहा है।
चीन के लिए क्यों अहम है टाइप 004
परमाणु प्रणोदन तकनीक से युक्त टाइप 004 न केवल असीमित रेंज प्रदान करेगा, बल्कि यह उच्च तकनीकी सेंसरों, मिशन प्रणालियों और भारी हथियारों के लिए भी पर्याप्त ऊर्जा देगा।
यदि यह परियोजना सफल होती है तो चीन, फ्रांस के बाद दुनिया का दूसरा देश बन जाएगा जो अमेरिका के स्तर का परमाणु सुपरकैरियर संचालित करेगा।
ताइवान और साउथ चाइना सी में शक्ति प्रदर्शन
चीन का यह नया कदम सीधे तौर पर ताइवान जलडमरूमध्य और दक्षिण चीन सागर में उसकी सैन्य स्थिति को और मजबूत करेगा। परमाणु ऊर्जा से चलने वाले कैरियर को बार-बार ईंधन की जरूरत नहीं होती, जिससे यह लंबे समय तक समुद्र में रहकर अभियान चला सकेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि टाइप 004 की तैनाती से चीन की स्ट्राइक कैपेसिटी और हवाई प्रभुत्व कई गुना बढ़ जाएगा।
भारत और अमेरिका के लिए खतरे की घंटी
टाइप 004 का निर्माण भारत और अमेरिका दोनों के लिए रणनीतिक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। यह न केवल साउथ चाइना सी में शक्ति संतुलन को बदल सकता है, बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र में भी चीन की उपस्थिति को और आक्रामक बना देगा।
फिलहाल चीन के पास तीन पारंपरिक एयरक्राफ्ट कैरियर हैं, जबकि अमेरिका के पास 11 परमाणु-संचालित सुपरकैरियर हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि बीजिंग इस अंतर को तेजी से कम कर रहा है और आने वाले दशक में यह मुकाबला बराबरी का हो सकता है।
निष्कर्ष
चीन का ‘टाइप 004’ न केवल एक तकनीकी उपलब्धि है बल्कि यह एक रणनीतिक संदेश भी है— कि अब एशिया के समंदरों में उसकी ताकत को नज़रअंदाज़ करना आसान नहीं होगा।
भारत और अमेरिका के लिए यह समय है कि वे अपने साझा नौसैनिक सहयोग और रक्षा रणनीतियों को और मज़बूत करें, क्योंकि चीन अब सिर्फ एक समुद्री शक्ति नहीं, बल्कि एक परमाणु समुद्री सुपरपावर बनने की ओर बढ़ रहा है।