
नई दिल्ली। ग्रामीण भारत को रोजगार की गारंटी देने वाली महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा (MGNREGA) को लेकर एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले तीन वित्तीय वर्षों में मनरेगा के तहत काम करने वाले परिवारों में से 8 प्रतिशत से भी कम को गारंटी वाले 100 दिन का रोजगार मिल सका। यह जानकारी एक सरकारी प्रस्तुति के जरिए संसदीय समिति को दी गई।
प्रेजेंटेशन में बताया गया कि बीते तीन वर्षों में मनरेगा के अंतर्गत काम पाने वाले प्रत्येक परिवार को औसतन सिर्फ 47 से 52 दिन का ही रोजगार मिला, जो योजना के मूल उद्देश्य से काफी कम है।
हर साल घटता-बढ़ता रहा रोजगार
सूत्रों के मुताबिक,
2022-23 में लगभग 6.2 करोड़ परिवारों को काम मिला, लेकिन केवल 36 लाख परिवार (5.8%) ही 100 दिन का रोजगार पा सके।
2023-24 में करीब 6 करोड़ परिवारों में से 45 लाख (7.5%) परिवारों को 100 दिन का काम मिला।
2024-25 में अब तक 5.8 करोड़ परिवारों को रोजगार मिला है, लेकिन सिर्फ 40.7 लाख परिवार (7%) ही 100 दिन का लक्ष्य पूरा कर पाए।
चालू वित्तीय वर्ष में अब तक प्रति परिवार औसतन 36 दिन का रोजगार ही उपलब्ध कराया जा सका है, हालांकि सरकार को उम्मीद है कि वित्तीय वर्ष के अंत तक यह संख्या बढ़ेगी।
महिलाओं और SC/ST की भागीदारी अधिक
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि मनरेगा में महिलाओं और अनुसूचित जाति-जनजाति (SC/ST) की भागीदारी उनकी जनसंख्या के अनुपात से कहीं अधिक रही है।
चालू वित्तीय वर्ष में SC/ST की हिस्सेदारी 36% से अधिक
महिलाओं की भागीदारी 56% से ज्यादा दर्ज की गई
ये आंकड़े पिछले तीन वर्षों के रुझान के अनुरूप हैं, जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि मनरेगा सामाजिक समावेशन के लिहाज से अहम भूमिका निभा रहा है।
फंड कटौती और भुगतान में देरी पर सियासी घमासान
संसदीय समिति की बैठक के दौरान कांग्रेस सदस्यों ने सरकार पर मनरेगा फंड में कटौती और भुगतान में देरी के आरोप लगाए। उनका कहना था कि पर्याप्त धनराशि न मिलने के कारण राज्यों में काम सीमित हो रहा है।
वहीं, भाजपा सदस्यों ने कुछ राज्यों में वित्तीय अनियमितताओं और दुरुपयोग का मुद्दा उठाया और ग्रामीण विकास मंत्रालय से विस्तृत जानकारी मांगी।
निगरानी में मिलीं गंभीर खामियां
सरकार ने समिति को बताया कि VB-G RAM G नामक पहल के तहत मनरेगा की निगरानी में कई कमियां उजागर हुई हैं। इनमें शामिल हैं—
कागजों में काम, लेकिन जमीन पर कोई गतिविधि नहीं
खर्च और भौतिक प्रगति में असमानता
श्रम प्रधान कार्यों में मशीनों का इस्तेमाल
डिजिटल अटेंडेंस सिस्टम की अनदेखी
इन खामियों ने योजना की प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
नए कानून से सुधार की उम्मीद
ग्रामीण विकास मंत्रालय का कहना है कि इन अनुभवों को ध्यान में रखते हुए एक नया कानून लाया गया है, जिससे मनरेगा के कार्यान्वयन और निगरानी ढांचे को मजबूत किया जा सके।
कांग्रेस सांसद सप्तगिरी उल्का की अध्यक्षता में हुई संसदीय समिति की बैठकें मुख्य रूप से मनरेगा पर केंद्रित रहीं। हालांकि, कुछ भाजपा सदस्यों ने पुराने कानून की तुलना VB-G RAM G एक्ट से करने पर आपत्ति भी जताई।
निष्कर्ष
मनरेगा आज भी करोड़ों ग्रामीण परिवारों के लिए जीवनरेखा है, लेकिन 100 दिन के रोजगार की कानूनी गारंटी ज़मीनी हकीकत में अब भी दूर दिखाई देती है। सवाल यह है कि क्या नए सुधार इस योजना को उसके मूल उद्देश्य तक पहुंचा पाएंगे?