
पेंटागन की ताजा रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि चीन की नौसेना (PLA Navy) 2035 तक अमेरिकी नौसेना को कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में पीछे छोड़ सकती है। वर्तमान में चीन की नौसेना संख्या के मामले में अमेरिका से आगे है, लेकिन तकनीकी क्षमताओं और एयरक्राफ्ट कैरियर, पनडुब्बियों के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ माना जाता था। हालाँकि, अब चीन इस स्थिति को तेजी से बदल रहा है।
एयरक्राफ्ट कैरियर का खेल
अमेरिका के पास दुनिया के 22 एयरक्राफ्ट कैरियर्स में से 11 हैं, जिनमें 10 निमिट्ज़ क्लास और 1 फोर्ड क्लास कैरियर शामिल हैं। ये सभी परमाणु ऊर्जा से संचालित हैं और समुद्र में कई महीनों तक ऑपरेट कर सकते हैं।
चीन के पास फिलहाल 3 एयरक्राफ्ट कैरियर हैं – लियाओनिंग, शानडोंग और हाल ही में सेवा में आया फुजियान। फुजियान चीन का पहला स्वदेशी फ्लैट-डेक कैरियर है, जिसमें EMALS तकनीक लगी है, जो पहले सिर्फ अमेरिका के पास थी।
पेंटागन के अनुसार, चीन का लक्ष्य 2035 तक कुल 9 एयरक्राफ्ट कैरियर तैयार करना है। यानि अगले दशक में चीन को हर 20 महीने में एक नया कैरियर तैयार करना होगा। यह अमेरिका के लिए रणनीतिक चुनौती बन सकता है, क्योंकि तकनीकी प्रगति के साथ चीन का समुद्री बेड़ा तेजी से मजबूत हो रहा है।
पनडुब्बियों में भी बढ़त
अमेरिका की नौसेना के पास 71 पनडुब्बियां हैं, जिनमें सभी परमाणु ऊर्जा से चलती हैं। इसमें 14 बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियां (SSBNs), 53 न्यूक्लियर-पावर्ड अटैक पनडुब्बियां (SSNs) और 4 गाइडेड मिसाइल पनडुब्बियां (SSGNs) शामिल हैं।
चीन के पास अभी 60 पनडुब्बियां हैं, जिनमें से केवल 12 न्यूक्लियर पावर से चलती हैं। बाकी 48 डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां (SSKs) हैं, जिनमें 12 में एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) तकनीक लगी है। पेंटागन का अनुमान है कि 2035 तक चीन की पनडुब्बियों की संख्या बढ़कर 80 तक पहुँच सकती है, जिनमें लगभग 20 न्यूक्लियर पनडुब्बियां होंगी।
रणनीतिक चुनौती
अमेरिका के विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की नई टाइप 095 और टाइप 096 न्यूक्लियर पनडुब्बियां अमेरिका और रूस की क्षमताओं के बराबर हैं। चीन हर साल अमेरिकी नौसेना की तुलना में ज्यादा पनडुब्बियां अपने बेड़े में शामिल कर रहा है। इसका मतलब है कि आने वाले दशक में चीन की समुद्री शक्ति अमेरिका की तुलना में अधिक हो सकती है।
भारत और अन्य देश
वर्तमान में भारत, यूके और इटली के पास दो-दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं। अमेरिका की तुलना में ये तकनीकी रूप से कम विकसित हैं। चीन की तेजी से बढ़ती नौसैनिक ताकत भारत और एशियाई समुद्री सुरक्षा के लिए भी गंभीर चुनौती साबित हो सकती है।
पेंटागन की यह रिपोर्ट साफ संदेश देती है कि समुद्री शक्ति के मामले में अमेरिका को चीन के बढ़ते कदमों पर नजर बनाए रखनी होगी, वरना 2035 तक अमेरिका का वर्चस्व चुनौतीपूर्ण स्थिति में आ सकता है।