Monday, December 15

यूपी भाजपा संगठन की कमान पूर्वांचल के हाथों में

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर पूर्वांचल का कद बढ़ता नजर आ रहा है। भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी महाराजगंज से सांसद पंकज चौधरी को सौंपकर साफ संकेत दे दिया है कि आने वाले चुनावी दौर में पार्टी का फोकस अब पूर्वांचल पर रहेगा। संगठन की यह नई सियासी चाल न सिर्फ 2026 के पंचायत चुनाव, बल्कि 2027 के विधानसभा और आगे 2029 के लोकसभा चुनाव की तैयारी के तौर पर देखी जा रही है।

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पश्चिम से पूर्वांचल की ओर शिफ्ट हुआ फोकस

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के बाद भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के बाद उपजी नाराजगी को साधने के लिए भूपेंद्र सिंह चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। जाट राजनीति और किसान मुद्दों को संतुलित करने की यह कोशिश 2024 के लोकसभा चुनाव में अपेक्षित नतीजे नहीं दे सकी। उलटे, भाजपा को सबसे बड़ा झटका पूर्वांचल से लगा। वहीं, पश्चिमी यूपी में राष्ट्रीय लोकदल के एनडीए में शामिल होने और जयंत चौधरी के केंद्रीय मंत्रिमंडल में आने के बाद भाजपा को वहां नए सिरे से रणनीति बदलने की जरूरत नहीं रही। ऐसे में पार्टी का रुख अब निर्णायक रूप से पूर्वांचल की ओर मुड़ गया है।

सत्ता की राह पूर्वांचल से

भाजपा नेतृत्व मानता रहा है कि भले ही संगठनात्मक ताकत पश्चिम में अधिक दिखे, लेकिन सत्ता का रास्ता पूर्वांचल से होकर गुजरता है। बड़ी आबादी, जटिल जातीय समीकरण और सामाजिक विविधता इस क्षेत्र को प्रदेश की राजनीति का केंद्र बनाती है। पंकज चौधरी के सामने सबसे बड़ी चुनौती इसी सामाजिक ताने-बाने को साधते हुए पार्टी को मजबूत करना होगी।

आंकड़े जो पूर्वांचल की ताकत बताते हैं

भाजपा के 45 वर्षों के इतिहास में यूपी में अब तक 16 प्रदेश अध्यक्ष बने हैं, जिनमें से 10 पूर्वांचल से रहे हैं। यदि प्रयागराज को अलग कर दिया जाए तो खांटी पूर्वांचल से आठ अध्यक्ष पार्टी की कमान संभाल चुके हैं। बीते सात प्रदेश अध्यक्षों ने कुल 22 वर्षों तक संगठन की बागडोर संभाली है। यह आंकड़े बताते हैं कि भाजपा का भरोसा लंबे समय से पूर्वांचल पर रहा है।

जातीय संतुलन की नई कोशिश

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, पूर्वांचल की जटिल जातीय संरचना भाजपा के लिए चुनौती भी है और अवसर भी। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने पिछड़ा वर्ग को साधकर ऐतिहासिक सफलता हासिल की थी, लेकिन इसके बावजूद पूर्वांचल पूरी तरह पार्टी का गढ़ नहीं बन सका। 2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) समीकरण ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी। ऐसे में कुर्मी समाज से आने वाले पंकज चौधरी को आगे कर भाजपा अब इस समीकरण को काटने की रणनीति पर काम कर रही है।

सहयोगियों के सहारे मजबूत मोर्चाबंदी

पूर्वांचल में भाजपा के सहयोगी दल—अपना दल (एस), सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और निषाद पार्टी—पहले से प्रभावी मौजूदगी रखते हैं। इन दलों के साथ तालमेल मजबूत कर भाजपा जातीय पॉकेट्स को साधने की कोशिश करेगी। पार्टी की इस रणनीति को जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी अब पूरी तरह पंकज चौधरी के कंधों पर है।

नई जिम्मेदारी, नई उम्मीदें

प्रदेश अध्यक्ष पद संभालते ही पंकज चौधरी ने सभी को साथ लेकर चलने का संदेश दिया है। अब उनकी संगठनात्मक क्षमता, राजनीतिक समझ और जातीय संतुलन साधने की रणनीति पर पूरे प्रदेश की नजर टिकी है। साफ है कि भाजपा ने पूर्वांचल के जरिए यूपी की सियासत में एक बार फिर नया दांव चला है, जिसके नतीजे आने वाले चुनावों में तय होंगे।

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