
भारत का इतिहास उन महापुरुषों से जगमगाता है जिन्होंने अपने जीवन और आदर्शों से न केवल राष्ट्र की तकदीर बदली, बल्कि पूरी मानवता को नई दिशा दी। 2 अक्टूबर का दिन इसी गौरवशाली विरासत की याद दिलाता है। यह वही तिथि है जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री जैसे दो महान विभूतियों ने जन्म लिया और भारत के भविष्य को नई राह दिखाई।
महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा जैसे अद्वितीय हथियारों से ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी। दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह से लेकर भारत में असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन तक उन्होंने यह सिद्ध किया कि जब जनता नैतिकता और अहिंसा के साथ खड़ी हो जाती है तो कोई भी सत्ता उसे दबा नहीं सकती। गांधीजी का चरखा केवल सूत कातने का साधन नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान का प्रतीक था। उनका विचार— “आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी”—आज भी आतंकवाद और हिंसा से जूझ रही दुनिया के लिए मार्गदर्शन है।
दूसरी ओर लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी सादगी, ईमानदारी और कर्मठता से स्वतंत्र भारत को आत्मनिर्भरता और अनुशासन का मंत्र दिया। उनका संघर्षमय जीवन, सामान्य परिस्थितियों से उठकर प्रधानमंत्री बनने तक की यात्रा और संकट की घड़ी में दिए गए “जय जवान, जय किसान” के नारे ने पूरे देश को आत्मविश्वास से भर दिया। यह केवल नारा नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का प्रतीक है।
दोनों महापुरुषों के जीवन में अद्भुत समानताएं थीं। गांधीजी ने जहां स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का संदेश दिया, वहीं शास्त्रीजी ने किसानों और सैनिकों के साहस से उस आत्मनिर्भरता को मजबूती दी। गांधीजी ने स्वतंत्रता की नींव रखी और शास्त्रीजी ने स्वतंत्र भारत के आत्मसम्मान को ऊंचाई दी।
आज जब हम 2 अक्टूबर का स्मरण करते हैं, तो यह केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं होना चाहिए। यह दिन हमें आत्ममंथन और संकल्प का अवसर देता है। संयुक्त राष्ट्र ने गांधी जयंती को “अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस” घोषित किया, जो विश्व पटल पर उनकी प्रासंगिकता को प्रमाणित करता है। शास्त्रीजी का दिया नारा आज भी किसानों और सैनिकों की शक्ति का आधार है।
भारत आज जिन चुनौतियों—भ्रष्टाचार, आतंकवाद, असमानता और पर्यावरण संकट—से जूझ रहा है, उनसे निपटने के लिए गांधीजी और शास्त्रीजी के आदर्श ही सबसे बड़ी प्रेरणा बन सकते हैं। गांधीजी का स्वच्छता पर बल ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की आत्मा है और शास्त्रीजी का संदेश आज भी आत्मनिर्भर भारत की नींव को मजबूत करता है।
निस्संदेह, गांधीजी और शास्त्रीजी दो ऐसे अमर प्रहरी हैं जिन्होंने दिखाया कि सच्चा नेतृत्व सत्ता का सुख नहीं, बल्कि जनकल्याण के लिए समर्पण है। 2 अक्टूबर का दिन हमें यह संकल्प दिलाता है कि हम उनके आदर्शों को अपने जीवन और राष्ट्र निर्माण की दिशा में अपनाएं। यही उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
✍️ डॉ. सतपाल
(शिक्षाविद)
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