
पाकिस्तान इस समय गंभीर आंतरिक सुरक्षा संकट का सामना कर रहा है। बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा जैसे सूबे लंबे समय से अलगाववादी आंदोलन की चपेट में हैं, और आतंकवादी हमलों में तेज़ी ने देश की एकता को गंभीर चुनौती दी है।
आतंक की बढ़ती मार:
इस्लामाबाद स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज (CRSS) की रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से सितंबर 2025 तक आतंकवादी हमलों में 2,414 लोग मारे गए, जो पिछले साल की समान अवधि से 58% अधिक है। केवल तीसरी तिमाही में 901 मौतें और 599 घायल हुए, जिनमें 96% से अधिक हिंसा केवल खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में हुई।
दो सूबे बगावत की कगार पर:
खैबर पख्तूनख्वा में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) सक्रिय है, जबकि बलूचिस्तान में बलूच विद्रोही हथियार उठाए हुए हैं। दोनों ही सूबे अपने अधिकारों और संसाधनों के शोषण को लेकर पाकिस्तानी सेना से त्रस्त हैं। खैबर पख्तूनख्वा में शरिया कानून की मांग तेज है और बलूचिस्तान में सेना के अत्याचारों से आम लोग परेशान हैं।
असीम मुनीर के राज में बिगड़े हालात:
पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर की सत्ता में आने के बाद इन सूबों में हालात और बिगड़ गए हैं। मुनीर ने अंतरराष्ट्रीय मोर्चों पर पाकिस्तान को आक्रामक दिखाने की कोशिश की और भारत के खिलाफ पंगा उठाकर अपनी छवि मजबूत की। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के बाद फील्ड मार्शल का दर्जा संवैधानिक रूप से प्राप्त किया और खुद को चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज घोषित करवा कर पाकिस्तान का सबसे शक्तिशाली शख्स बना दिया।
सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि:
विशेषज्ञों का कहना है कि खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में हालात बिगड़ने का मुख्य कारण इन क्षेत्रों के लोगों के अधिकारों की अनदेखी है। आम जनता संसाधनों के दमन और सरकारी अत्याचारों के कारण संघर्ष कर रही है।
भारत की भूमिका:
विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि भारत को एक बड़े भाई की तरह इन लोगों की मदद करनी चाहिए। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) की तरह, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में जनमत संग्रह कराना और अफगानिस्तान के साथ रणनीतिक सहयोग करना पाकिस्तान में स्थायी शांति की दिशा में अहम कदम साबित हो सकता है।
निष्कर्ष:
आज पाकिस्तान की सबसे बड़ी चुनौती न केवल बाहरी बल्कि आंतरिक सुरक्षा है। यदि स्थिति इसी तरह बिगड़ती रही, तो बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा देश से अलगाव की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। असीम मुनीर के अधीन पाकिस्तानी सेना की बढ़ती शक्ति और नागरिक नेतृत्व की कमजोर स्थिति, पाकिस्तान के भविष्य को और अस्थिर कर रही है।