
बिहार की राजनीति में एक बार फिर नई हलचल मची है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सत्ता में हैं, एनडीए गठबंधन मजबूत दिखाई दे रहा है, लेकिन इसके बावजूद राजनीतिक गलियारों में उनकी स्थिरता को लेकर सवाल उठते रहे हैं। वजह साफ है—नीतीश कुमार का वह राजनीतिक इतिहास, जिसमें उन्होंने कई बार पाला बदला और विरोधियों को भी अपने पक्ष में खड़ा कर लिया।
नीतीश की स्थिरता पर फिर संशय क्यों?
नीतीश कुमार अपने राजनीतिक जीवन में भाजपा के साथ भी रहे, आरजेडी को भी अपनाया और फिर छोड़ भी दिया। कई बार उन्होंने वादे किए कि वे अब पाला नहीं बदलेंगे, पर इतिहास में कुछ बार इसका उल्टा भी हुआ। इसलिए उनकी ‘पिछली गलती न दोहराने’ वाली घोषणाओं पर भी संशय बना रहता है।
नया राजनीतिक गणित: 85+35+6 = 126
राजनीतिक विश्लेषकों ने हाल के आंकड़ों के आधार पर दो नए खेमों की संभावना पर चर्चा छेड़ दी है—
- 85 + 35 + 6 = 126 का संभावित नया मोर्चा
- 89 + 19 + 4 + 5 = 117 का विपक्षी समीकरण
बिहार में राजनीति वैसे भी अनिश्चितताओं का खेल रही है। स्थायी दोस्त और दुश्मन यहां मानो होते ही नहीं।
नीतीश कुमार—कम सीटों में भी नंबर वन
बिहार की राजनीति में यह तथ्य अटल है कि नीतीश कुमार लगातार नंबर वन की कुर्सी पर बैठे रहे हैं, भले ही सीटें कम रही हों।
भाजपा लंबे समय से उनकी सहयोगी रही है। 2005 से 2015 तक और हाल के वर्षों में भी भाजपा ने उन्हें नेतृत्व का पूरा सम्मान दिया।
2025 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी फिर भी जेडीयू नेता नीतीश के पास ही गई। इससे साफ है कि भाजपा ने हमेशा गठबंधन धर्म निभाया और नीतीश को बड़े भाई का दर्जा दिया।
भाजपा की उदारता—अक्सर नीतीश के पक्ष में
- नीतीश जब सिर्फ 2 सांसद वाले नेता थे, तब भी भाजपा ने उन्हें बराबरी का दर्जा दिया।
- भाजपा ने अपनी जीती हुई 22 सीटों में से 5 सीटें जेडीयू के लिए छोड़ीं।
- विधानसभा से लेकर निकाय चुनावों तक, भाजपा ने नीतीश के सम्मान में कोई कमी नहीं छोड़ी।
- 2020 में भाजपा बड़ी पार्टी होते हुए भी उसने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह भाजपा की ओर से गठबंधन धर्म का सबसे बड़ा उदाहरण है।
गृह विभाग और स्पीकर का मुद्दा—’ऑल इज़ वेल’
पहली बार बिहार में गृह विभाग मुख्यमंत्री के पास नहीं है। भाजपा ने स्पीकर पद भी मांग लिया।
इस पर कई लोग सवाल उठा रहे थे कि क्या नीतीश को घेरा जा रहा है?
लेकिन अंदरखाने से मिली सूचना के अनुसार सभी फैसले नीतीश कुमार की सहमति से हुए। यानी गठबंधन में सब ठीक है और भ्रम फैलाने वाली खबरें महज अटकलें हैं।
“भाजपा नीतीश को निपटा रही है”—आरोप बेबुनियाद
2020 से यह आरोप उठता रहा कि भाजपा नीतीश को किनारे करना चाहती है।
लेकिन हर बार भाजपा ने यह साबित किया कि वह नीतीश को सम्मान देती है।
2020 में जेडीयू की सीटें कम होने के बावजूद भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री घोषित किया।
इसके संकेत साफ हैं—गठबंधन में भरोसा कायम है।
गठबंधन धर्म—एनडीए में मजबूत, विपक्ष में कमजोर
एनडीए की सफलता की वजह उसका गठबंधन धर्म माना जाता है।
महागठबंधन (INDIA) में यह हमेशा कमजोर कड़ी रही है।
यही कारण है कि नीतीश कुमार अब सार्वजनिक मंचों से बार-बार कहते हैं—
“इस बार गलती नहीं होगी, जहां हैं वहीं रहेंगे।”
निष्कर्ष
बिहार की राजनीति में संशय और समीकरणों की हलचल हमेशा बनी रहती है।
लेकिन मौजूदा परिदृश्य में न तो नीतीश के पाला बदलने के संकेत हैं और न भाजपा के अंदर कोई दुविधा।
‘85+35+6 = 126’ जैसे समीकरण सिर्फ राजनीतिक चर्चाओं को हवा दे रहे हैं, हकीकत इसके उलट फिलहाल स्थिर दिखाई देती है।