
पटना, 2 दिसंबर। बिहार विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद राजद और कांग्रेस अलग-अलग बैठकों में हार के कारण तलाशने में जुटे हैं। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि समीक्षा की यह कवायद महज़ औपचारिकता है, क्योंकि गठबंधन की हार की असली वजह एनडीए नहीं, बल्कि महागठबंधन के भीतर की आपसी लड़ाई, जिद और अविश्वास रहा।
टिकट बंटवारे से लेकर “फ्रेंडली फाइट” तक, भीतर ही भीतर चलता रहा संघर्ष
चुनाव से पहले सीटों को लेकर खींचतान इतनी बढ़ी कि 11 सीटों पर महागठबंधन के घटक दल आमने-सामने उतर आए। नतीजन मुकाबला एनडीए से कम और अपने सहयोगियों से ज्यादा रहा। राजनीतिक गलियारों में इसे “हम मीर, तो हम मीर” वाली लड़ाई बताया जा रहा है, जिसने गठबंधन की जीत की संभावनाओं को शुरू से ही कमजोर कर दिया।
कांग्रेस की बैठक, दूरी बढ़ाने के संकेत
दिल्ली और पटना में समीक्षा बैठकों के बाद बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ने साफ कहा कि राजद के साथ संबंध केवल चुनावी थे, संगठनात्मक नहीं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि चुनाव के बाद दोनों दलों के बीच अब तक किसी साझा रणनीति को लेकर बात नहीं हुई। राजनीतिक संदेश स्पष्ट है—गठबंधन आगे चल पाएगा या नहीं, यह भी अनिश्चित है।
‘बेमन का गठबंधन’ और परिणामों में परिलक्षित विश्वास की कमी
राजद–कांग्रेस–वाम दलों का गठबंधन शुरू से ही अविश्वास से घिरा था। सीट बंटवारे पर सहमति न बनने से कई जगह फ्रेंडली फाइट की स्थितियाँ बनीं। सवाल उठता है कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जैसे शीर्ष नेता 11 सीटों पर अपने ही उम्मीदवारों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की अनुमति कैसे दे बैठे?
जहां-जहां सहयोगियों ने सहयोगियों को हराया
चुनाव परिणामों ने साफ कर दिया कि महागठबंधन ने खुद ही अपनी राह रोकी—
- वैशाली: राजद बनाम कांग्रेस—फायदा जदयू को।
- राजापाकड़: कांग्रेस बनाम भाकपा—जीता जदयू।
- कहलगांव: कांग्रेस और राजद के बीच मुकाबला—लाभ जदयू को मिला।
- सुल्तानगंज: कांग्रेस की जिद ने राजद का समीकरण बिगाड़ा।
- चैनपुर: VIP और राजद की टक्कर—नतीजा जदयू के पक्ष में गया।
- बिहारशरीफ, बछवाड़ा, नरकटियागंज, सिकंदरा समेत कई सीटों पर घटक दलों ने एक-दूसरे के वोट काटे, जिससे एनडीए उम्मीदवारों की राह आसान हो गई।
इन तमाम सीटों पर महागठबंधन के सहयोगियों ने ही एक-दूसरे को निर्णायक नुकसान पहुँचाया।
अब समीक्षा क्यों? किसकी तलाश?
चुनाव विशेषज्ञों का कहना है कि जब हार के स्पष्ट कारण पहले से सामने हैं—जिद, अविश्वास और आपसी लड़ाई—तो समीक्षा बैठकों का उद्देश्य केवल “सिंबॉलिक” लगता है। सूत्रों के अनुसार, समीक्षा का असली मकसद शायद कुछ बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा बचाने के लिए बलि का बकरा खोजने तक सीमित रह जाए।