
रायपुर: सुकमा जिले के पुवर्थी गांव में गुरुवार को नक्सल कमांडर माड़वी हिड़मा और उनकी पत्नी राजक्का की लाशें पहुंचीं। 18 नवंबर को आंध्र प्रदेश के घने जंगलों में एनकाउंटर में मारे गए हिड़मा और राजक्का का शव गांव में गोंड रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान पूरा गांव शोक में डूबा रहा और बूढ़ी मां की आंखों से बेटे की मौत के आंसू फूट पड़े।
हिड़मा: नक्सल आंदोलन का नाम और खौफ
माड़वी हिड़मा बस्तर और दंडकारण्य क्षेत्र का चर्चित नक्सल कमांडर था। 15 साल की उम्र में हथियार उठाकर उसने सेंट्रल कमेटी में जगह बनाई। झीरम, दंतेवाड़ा समेत 20 से अधिक हमलों में शामिल हिड़मा ने सैकड़ों लोगों की जान ली और सिर पर दो करोड़ रुपये का इनाम रखा गया था। माओवादी संगठन ने उसे आदिवासी युवाओं के लिए रोल मॉडल की तरह पेश किया। हिड़मा की कहानियों ने 2007 के बाद शांत हुए नक्सल आंदोलन को फिर से सक्रिय कर दिया।
मां का वादा, बेटे ने नहीं माना
हिड़मा की मां ने 10 नवंबर को छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम विजय शर्मा से मुलाकात के दौरान वादा किया था कि वह बेटे को सरेंडर के लिए मनाएंगी। मगर हिड़मा ने यह गुहार ठुकरा दी। 8 दिन बाद वह अपनी पत्नी राजक्का और 6 साथियों के साथ मुठभेड़ में मारा गया।
पुवर्थी गांव में शोक का माहौल
मौत की खबर जैसे ही गांव में फैली, बूढ़ी मां ने सिर पकड़ लिया। सुरक्षाबलों और आम लोगों पर हुए हमलों, निर्मम हिंसा और जनसंहार के बावजूद, हिड़मा का बेटा होना और उसकी मौत का गम उनकी आंखों में छलक पड़ा। अंतिम संस्कार के समय उनकी आंखों से सूखी आंखें बरस पड़ीं, और उन्होंने बेटे-बहू के शवों को चूम कर अंतिम विदाई दी।
हिड़मा उनके लिए अपराधी था, लेकिन मां की नजर में वह बेटा था, जिसने अंतिम क्षण तक उनकी बात नहीं मानी।