Thursday, November 20

बीड़ी से लगी आग ने ली हेड कांस्टेबल की जान

मेरठ: साकेत के शर्मा नगर क्षेत्र में मंगलवार देर रात दिल दहला देने वाला हादसा हुआ। पुलिस लाइन में तैनात हेड कांस्टेबल विभोर पंवार (2011 बैच) अपने किराए के कमरे में आग लगने से जिंदा जल गए। पड़ोसियों ने कमरे से उठता घना धुआँ देखा तो दरवाजा तोड़कर अंदर पहुंचे, लेकिन तब तक विभोर का शरीर लगभग कंकाल में बदल चुका था।

बीड़ी से रजाई में लगी आग बनी मौत का कारण

शामली जिले के नाला गांव निवासी विभोर दो महीने पहले ही किराए के मकान में रहने आए थे। सोमवार को वह घर से ड्यूटी पर लौटे थे। रात करीब 10 बजे उन्होंने कमरे में बीड़ी जलाई और इसी दौरान रजाई में आग लग गई। बताया जा रहा है कि उन्होंने आग बुझाने की कोशिश की और दूसरी रजाई ओढ़ ली।

हादसे के तुरंत बाद उन्होंने अपनी पत्नी को फोन कर आग लगने की जानकारी भी दी, लेकिन शायद उन्हें अंदाजा नहीं था कि यह आग जानलेवा बन जाएगी।

सुबह उठते धुएं ने खोली मौत की खबर

सुबह लगभग साढ़े तीन बजे मकान मालिक ने कमरे से उठता धुआं देखा। दरवाजा तोड़कर अंदर देखा तो बेड, रजाइयाँ और पूरा सामान जल चुका था। विभोर का शरीर गर्दन से नीचे लगभग पूरी तरह राख हो चुका था।

फोरेंसिक टीम ने मौके से खाली शराब की बोतल, पानी की बोतल, जली हुई दो रजाइयाँ और पूरी तरह जला हुआ पलंग बरामद किया। दरवाजा अंदर से बंद मिलने के कारण पुलिस ने इसे स्पष्ट रूप से दुर्घटना बताया है। एसएसपी डॉ. विपिन ताडा ने बताया कि प्रारंभिक जांच में यह मामला हादसा ही प्रतीत होता है।

परिजनों पर टूटा दुखों का पहाड़

विभोर के पिता जयकुमार सिंह, भाई आशीष और अन्य परिजन पोस्टमॉर्टम के बाद मेरठ पुलिस लाइन पहुंचे, जहाँ अधिकारियों ने नम आँखों से उन्हें अंतिम विदाई दी। बाद में शव को गाँव ले जाकर अंतिम संस्कार किया गया।

विभोर की जिंदगी पहले ही कई मुश्किलों से गुजर चुकी थी।

  • उनकी पहली पत्नी की मौत एक साल पहले हो चुकी थी।
  • पहली पत्नी से उनकी 8 साल की बेटी और 6 साल का बेटा शिवांश है।
  • कुछ समय पहले उन्होंने दिल्ली निवासी अंशू से दूसरी शादी की थी।
  • उनके दो भाई निखिल और आशीष भारतीय सेना में सिपाही हैं।

परिवार और ग्रामीणों ने सरकार से आर्थिक मुआवजा और आश्रित को नौकरी देने की मांग की है।

ईमानदारी व सादगी के लिए जाने जाते थे विभोर

गाँव वालों के अनुसार विभोर बेहद मिलनसार, ईमानदार और दूसरों को सही राह दिखाने वाले इंसान थे। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर चुके विभोर हर सप्ताह परिवार से मिलने आते थे और फिर ड्यूटी पर लौट जाते थे। उनका असमय निधन पूरे गाँव और पुलिस विभाग के लिए गहरा सदमा है।

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