Wednesday, December 17

**धर्म परिवर्तन के लिए जरूरी नहीं समारोह:

मुस्लिम पत्नी–हिंदू पति के तलाक मामले में मद्रास हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी**

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चेन्नै: मद्रास हाईकोर्ट ने धर्म परिवर्तन से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति का आचरण ही यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि उसने अपना धर्म बदल लिया है। अदालत ने कहा कि किसी विशेष धर्म में प्रवेश के लिए अनिवार्य रूप से किसी समारोह, घोषणा या अनुष्ठान की जरूरत नहीं होती।

यह टिप्पणी एक मुस्लिम पत्नी और हिंदू पति द्वारा दायर आपसी सहमति से तलाक की अर्जी के संदर्भ में की गई, जिसे इससे पहले फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

‘आचरण से सिद्ध हुआ धर्म परिवर्तन’

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि पत्नी के हिंदू धर्म अपनाने के प्रमाणस्वरूप कोई रीति-रिवाज या औपचारिकता पूरी नहीं की गई। अदालत ने कहा कि पत्नी भले ही जन्म से मुस्लिम थी, लेकिन उसके आचरण से स्पष्ट है कि उसने हिंदू धर्म अपना लिया था।

कोर्ट ने टिप्पणी की कि—
“धर्म परिवर्तन केवल समारोहों से नहीं, व्यक्ति के व्यवहार और जीवन पद्धति से भी प्रमाणित हो सकता है।”

अदालत ने माना कि केवल धार्मिक अनुष्ठान की अनुपस्थिति, पति-पत्नी द्वारा दायर आपसी सहमति से तलाक की याचिका को खारिज करने का पर्याप्त आधार नहीं हो सकता।

मामला अंबत्तूर सब कोर्ट में वापस भेजा

हाईकोर्ट ने इस केस को चेन्नै के अंबत्तूर सब कोर्ट में वापस भेज दिया है और निर्देश दिया है कि मामला मेरिट के आधार पर सुना जाए। साथ ही चार हफ्तों के भीतर अंतिम आदेश पारित करने को कहा गया है।

याचिकाकर्ता दंपती ने हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13बी के तहत आपसी सहमति से तलाक की अर्जी दायर की थी, जिसके माध्यम से वे शांतिपूर्ण तरीके से शादी खत्म करना चाहते हैं।

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