Saturday, November 15

बिहार चुनाव 2025 का भूचाल: आरजेडी को लगा करारा झटका, 2030 तक राज्यसभा से हो सकती है ‘गायब’!

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के राजनीतिक भविष्य पर गहरा सवाल खड़ा कर दिया है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चुनाव लड़ने के बावजूद पार्टी महज़ 25 सीटों पर सिमट गई। इस करारी हार का असर न सिर्फ बिहार की सियासत में दिखेगा, बल्कि इसका ‘करंट’ 2030 तक दिल्ली के संसद भवन तक महसूस किया जा सकता है।

राज्यसभा में कम होता कद, 2030 में हो सकती है ‘शून्य’ उपस्थिति

वर्तमान में आरजेडी के 5 राज्यसभा सदस्य हैं, लेकिन आने वाले वर्षों में एक-एक कर सभी की सदस्यता समाप्त होती जाएगी। राजनीतिक समीकरणों के मुताबिक, वर्ष 2030 तक पार्टी की राज्यसभा में उपस्थिति खत्म होने की आशंका है।

यह स्थिति तीन दशकों में पहली बार देखने को मिल सकती है, जब बिहार के सबसे प्रभावशाली दलों में से एक रही आरजेडी का उच्च सदन में कोई सदस्य न बचे।

कौन-कब रिटायर हो रहे हैं?

आरजेडी के वर्तमान राज्यसभा सांसदों का कार्यकाल इस तरह समाप्त होगा—

  • अप्रैल 2026: प्रेमचंद गुप्ता, अमरेंद्र धारी सिंह
  • जुलाई 2028: फैज़ अहमद
  • अप्रैल 2030: मनोज कुमार झा, संजय यादव

इन सीटों को दोबारा हासिल करने की संभावना बेहद कम दिख रही है।

2026 और 2028: दोनों चुनावों में NDA के दबदबे के आसार

नई बिहार विधानसभा में NDA के स्पष्ट बहुमत और मजबूत पकड़ को देखते हुए—

  • 2026 में राज्यसभा की 5 सीटें (2 जेडीयू, 1 राष्ट्रीय लोक मोर्चा, 2 आरजेडी की)
  • 2028 में 5 सीटें (3 बीजेपी, 1 जेडीयू, 1 आरजेडी की)

दोनों ही बार NDA के खाते में जाने की पूरी उम्मीद है। ऐसे में आरजेडी के लिए राज्यसभा में जल्दी वापसी का रास्ता लगभग बंद होता दिख रहा है।

AIMIM के समर्थन का समीकरण भी कमजोर

भले ही AIMIM के पास नई विधानसभा में पाँच विधायक हों, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि छोटी पार्टियाँ समय और अपने हित के अनुसार ही समर्थन देती हैं। अतः 2030 में उनके सहयोग से एक सीट बचा लेने की उम्मीद भी बेहद धुंधली है।

दिल्ली की राजनीति में आरजेडी की पकड़ ढीली

बिहार में घटते जनाधार और राज्यसभा में सिकुड़ती उपस्थिति के बीच 2030 तक दिल्ली की राजनीति में आरजेडी की आवाज लगभग सुनाई न देने की स्थिति बन सकती है।
एनडीए की बढ़ती ताकत और बदलते राजनीतिक समीकरणों ने पार्टी के सामने अस्तित्व की चुनौती खड़ी कर दी है।

नतीजा साफ है— बिहार में लगी करारी चोट का असर दूर तक जाएगा और आरजेडी को आने वाले वर्षों में अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी।

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