
गाजियाबाद। उत्तर प्रदेश की डासना जिला कारागार ने सजा को शिक्षा और सुधार का माध्यम बना दिया है। अब जेल केवल कैदियों के लिए नहीं, बल्कि ज्ञान और आत्मनिर्भरता का केंद्र बन चुकी है।
बंदी कर रहे बोर्ड परीक्षा
जेल में पुरुष, महिला और बाल उपचारी बंदी यूपी बोर्ड, ओपन बोर्ड और सीबीएसई से 10वीं और 12वीं की परीक्षा दे रहे हैं। कई कैदी अच्छे अंक लेकर पास हो चुके हैं और समाज में नई पहचान बना रहे हैं।
हाईटेक लाइब्रेरी और कंप्यूटर क्लास
जेल में आधुनिक लाइब्रेरी और कंप्यूटर क्लास की सुविधा शुरू की गई है। विशेष रूप से महिला बंदियों के लिए ‘कल्पना चावला लाइब्रेरी’ बनाई गई है, जो उनके पास संचालित होती है। जेल अधीक्षक सीताराम शर्मा ने बताया कि इसका उद्देश्य महिलाओं को आत्मनिर्भर और जागरूक बनाना है।
मां के साथ बच्चे
इस समय जेल में 8 बच्चे अपनी माताओं के साथ रह रहे हैं। इनमें से एक बच्चा एलकेजी में बाहर के स्कूल में पढ़ता है। उसकी सुरक्षा, आवागमन, पौष्टिक भोजन और खेलकूद की पूरी जिम्मेदारी जेल प्रशासन की है।
काम और मजदूरी से आत्मनिर्भरता
पुरुष बंदियों को उनकी योग्यता के अनुसार जेल में काम दिया जाता है। इसके बदले उन्हें प्रतिदिन 81 रुपये मजदूरी मिलती है। इससे बंदियों में आर्थिक आत्मनिर्भरता और जिम्मेदारी की भावना विकसित हो रही है।
पूर्व बंदियों की प्रतिक्रिया
जेल अधीक्षक ने बताया कि कई पूर्व बंदी फोन, पत्र और संदेश भेजकर शिक्षा और कौशल के लिए धन्यवाद देते हैं। डासना जेल ने साबित कर दिया है कि कारागार भी नई शुरुआत का द्वार बन सकता है।
निष्कर्ष:
डासना जेल की यह पहल अन्य कारागारों के लिए मिसाल है। यहां शिक्षा, कौशल और सुधार का समन्वय बंदियों के भविष्य को बेहतर बना रहा है और समाज में सकारात्मक योगदान देने की दिशा में उन्हें तैयार कर रहा है।