
मेरठ‑दिल्ली इनपुट: विदेशी खुफिया एजेंसी ISI धार्मिक संगठनों का उपयोग कर कमजोर पृष्ठभूमि के युवाओं को कट्टर बनाकर देश-विरोधी गतिविधियों के लिए भर्ती कर रही है।
रामबाबू मित्तल, दिल्ली।
हरियाणा के फरीदाबाद में बड़ी मात्रा में विस्फोटक बरामदगी और फिर दिल्ली के लाल किले के पास हुए भयावह कार धमाके ने पूरे देश की सुरक्षा स्थापना को झकझोरा दिया है। इन घटनाओं के बाद मिली खुफिया जानकारी में एक चौकाने वाला और संगठित पैटर्न उभरकर सामने आया है — विदेशी खुफिया एजेंसी ISI कथित तौर पर धार्मिक जमातों के सहारे कमजोर आर्थिक‑सामाजिक पृष्ठभूमि के युवाओं को स्लीपर सेल के रूप में तैयार कर रही है।
सुरक्षा और खुफिया विभाग के सूत्रों के अनुसार, इस भर्ती‑प्रक्रिया में सबसे पहले लक्षित युवाओं को धार्मिक ढांचे में घसीटा जाता है ताकि उनका भरोसा और आस्था मज़बूत की जा सके। लगभग 30–40 दिनों की नाइके परिणति (ट्रेनिंग) में मनोवैज्ञानिक प्रभाव, राजनैतिक एजेंडा और कट्टर विचारधारा की बुनियाद डाली जाती है। इसके बाद आर्थिक मदद, रोज़गार के वादे और भविष्य की गारंटी देकर उन्हें हिंसा और आतंकी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
खुफिया इनपुट की मुख्य बातें
- स्रोत बताते हैं कि भर्ती‑रूपरेखा चरणबद्ध है — पहचान, विश्वास निर्माण, मनोवैज्ञानिक बंधन, ट्रेनिंग और फिर परिचालन।
- ट्रेनिंग में बुनियादी विस्फोटक ज्ञान, सुरक्षात्मक लगावों से बचने के तरीके और स्थानीय नेटवर्क बनाना शामिल होता है।
- स्लीपर सेल लंबे समय तक आम नागरिकों के बीच छिपकर रहते हैं और ‘मिशन’ के लिए तैयार होने पर अचानक सक्रिय होते हैं।
- आर्थिक लालच, लैंगिक वादे और रोज़गार के झांसे का उपयोग युवाओं को तोड़ने और कट्टर बनाने के लिए किया जाता है।
सुरक्षा एजेंसियों का रुख
खुफिया समुदाय के शीर्ष सदस्यों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि देश के अंदर ऐसे नेटवर्क का पता लगाने के लिए राष्ट्रीय और राज्य‑स्तरीय एंट्री‑इंटेलिजेंस टीमों को हाइ‑अलर्ट पर रखा गया है। “हम ऐसी किसी भी संरचना को बर्दाश्त नहीं करेंगे जो हमारे समाज को नुकसान पहुंचाए। स्थानीय स्तर पर समुदाय‑आधारित जागरूकता और सूचना बढ़ाना होगा,” एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा।
समुदाय और प्रशासन की जिम्मेदारियाँ
विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ़ सुरक्षाबलों पर निर्भरता उम्मीदों पर खरी नहीं उतरेगी। समुदाय‑नेतृत्व, धार्मिक संगठनों के जिम्मेदार पदाधिकारी और स्थानीय प्रशासन को मिलकर निम्न कदम उठाने होंगे:
- आर्थिक रूप से कमजोर युवाओं के लिए वैकल्पिक रोजगार और कौशल विकास के कार्यक्रम।
- धार्मिक संस्थाओं में पारदर्शिता और सकारात्मक संदेशों को बढ़ावा।
- शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के जरिए युवा‑मनोवृत्ति को मजबूत करना।
- नागरिकों के लिए ‘रैडिकलाइज़ेशन’ के संकेतों की पहचान पर जागरूकता अभियान।
एक था मामला — क्या सबूत हैं पर्याप्त?
खुफिया सूत्रों ने बताया कि हालिया बरामदगी और धमाके के संदर्भ में फॉरेंसिक और सिग्नल इंटेलिजेंस से संबंधित तकनीकी साक्ष्यों की जांच जारी है। प्रारम्भिक इनपुट यह संकेत देते हैं कि घटनाओं के पीछे एक संरचित भर्ती‑प्रक्रिया थी, परन्तु मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए और विस्तृत तफ्तीश आवश्यक है।
निष्कर्ष और अपील
देश की सुरक्षा केवल एजेंसियों का काम नहीं — हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने आस‑पास की असामान्य गतिविधियों, संदिग्ध व्यवहार और युवाओं को प्रभावित करने वाले संदेहास्पद संपर्कों की सूचना स्थानीय पुलिस या नजदीकी सुरक्षा कार्यालय को दे। सरकार और समुदाय अगर मिलकर सामाजिक सुरक्षा‑जाल मजबूत करेंगे तो ऐसे स्लीपर सेल के जाल को समय रहते खोला जा सकता है।