
नई दिल्ली। देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने न्याय व्यवस्था को लेकर एक गहरी और दूरदर्शी टिप्पणी करते हुए कहा है कि मुकदमेबाजी अक्सर टूट चुके रिश्तों का पोस्टमॉर्टम होती है, जबकि मध्यस्थता (मेडिएशन) रिश्तों को बचाने और सुलझाने की कोशिश है। उन्होंने इसे कानून की कमजोरी नहीं, बल्कि उसका सबसे उन्नत और मानवीय स्वरूप बताया।
गोवा में बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित मध्यस्थता पर राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए CJI ने कहा कि बदलते समय के साथ न्याय प्रणाली को भी खुद को ढालना होगा। उन्होंने जोर दिया कि अदालतों को केवल मुकदमे चलाने की जगह न मानकर विवाद समाधान का केंद्र बनाया जाना चाहिए, जहां लोगों को न्याय पाने के कई विकल्प उपलब्ध हों।
नई तकनीक और साइबर अपराधों पर वकीलों को विशेष प्रशिक्षण की जरूरत
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर अपराध और डिजिटल कानूनों से जुड़ी नई चुनौतियों ने कानूनी पेशे को अधिक जटिल बना दिया है। ऐसे में देशभर के वकीलों को आधुनिक तकनीक और उभरते कानूनों पर विशेष प्रशिक्षण दिया जाना जरूरी है।
इसके लिए उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की विधि अकादमी स्थापित करने का सुझाव दिया, ताकि वकील समय के साथ खुद को अपडेट कर सकें और न्याय व्यवस्था अधिक प्रभावी बन सके।
अच्छा मीडिएटर वही, जो भावनाओं और संस्कृति को समझे
मध्यस्थता की भूमिका पर विस्तार से बोलते हुए CJI ने कहा कि एक अच्छा मीडिएटर केवल कानूनी भाषा तक सीमित नहीं रहता, बल्कि स्थानीय बोली, संस्कृति और मानवीय भावनाओं को भी समझता है। यही समझ विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने में मदद करती है।
अदालतों में प्रशिक्षित मध्यस्थों की भारी कमी
मुख्य न्यायाधीश ने न्याय प्रणाली की एक बड़ी चुनौती की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि देश में प्रशिक्षित मीडिएटरों की भारी कमी है।
उन्होंने बताया कि वर्तमान में देश में करीब 39 हजार प्रशिक्षित मध्यस्थ हैं, जबकि एक प्रभावी और मजबूत व्यवस्था के लिए 2.5 लाख से अधिक मीडिएटरों की आवश्यकता है। यह कमी जिला अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक साफ दिखाई देती है।
‘मल्टी-डोर कोर्टहाउस’ की अवधारणा पर जोर
CJI सूर्यकांत ने ‘मल्टी-डोर कोर्टहाउस’ की अवधारणा को आगे बढ़ाने की आवश्यकता बताई। इसके तहत एक ही परिसर में मध्यस्थता, पंचाट (आर्बिट्रेशन) और मुकदमेबाजी—तीनों विकल्प उपलब्ध हों।
उन्होंने कहा कि जब कोई व्यक्ति न्याय के लिए अदालत पहुंचे, तो उसके सामने पहले मध्यस्थता और पंचाट के रास्ते खुले हों और आवश्यकता पड़ने पर मुकदमेबाजी का विकल्प मौजूद रहे।
न्याय व्यवस्था को मानवीय और प्रभावी बनाने की अपील
अपने संबोधन में CJI ने स्पष्ट किया कि न्याय का उद्देश्य केवल फैसला सुनाना नहीं, बल्कि सामाजिक संतुलन, रिश्तों की रक्षा और भरोसे की बहाली भी है। मध्यस्थता इस दिशा में एक सशक्त साधन है, जो अदालतों पर बोझ कम करने के साथ-साथ समाज में संवाद और समझ को बढ़ावा देती है।
प्रधान न्यायाधीश के ये विचार न केवल न्यायिक सुधारों की दिशा तय करते हैं, बल्कि एक ऐसी न्याय प्रणाली की कल्पना भी करते हैं, जहां कानून के साथ संवेदना और संवाद भी उतने ही मजबूत हों।