
नई दिल्ली: क्रिसमस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को दिल्ली के ऐतिहासिक ‘कैथेड्रल चर्च ऑफ द रिडेम्प्शन’ में प्रार्थना सभा में भाग लिया। इस दौरान प्रार्थनाएं, क्रिसमस कैरोल्स और भजन आयोजित किए गए। दिल्ली के बिशप राइट रेवरेंड डॉ. पॉल स्वरूप ने पीएम मोदी के लिए विशेष प्रार्थना की। इस कार्यक्रम में दिल्ली और उत्तर भारत से बड़ी संख्या में ईसाई श्रद्धालु उपस्थित रहे।
ब्रिटिश वायसराय का चर्च
कैथेड्रल चर्च ऑफ द रिडेम्प्शन, जिसे वायसराय चर्च के नाम से भी जाना जाता है, दिल्ली के सबसे पुराने और ऐतिहासिक गिरिजाघरों में से एक है। यह लुटियंस दिल्ली में स्थित है, जो राष्ट्रपति भवन और संसद भवन के पास है। उत्तर भारत के चर्च के दिल्ली डायोसीज का मुख्य कैथेड्रल भी यही है।
कैसे हुई निर्माण की शुरुआत?
1900 के आसपास ब्रिटिश राजधानी दिल्ली स्थानांतरित हो रही थी, उस समय ब्रिटिश अधिकारियों और इंग्लैंड से आए उच्च स्तरीय अधिकारियों की धार्मिक जरूरतों को पूरा करने के लिए इस चर्च की आवश्यकता महसूस हुई।
तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड इरविन ने 1927 में चर्च की नींव रखी। डिजाइन ब्रिटिश आर्किटेक्ट हेनरी अलेक्जेंडर नेसबिट मेड ने तैयार किया, जो वेनिस के चर्च ऑफ इल रेडेंटोर से प्रेरित था और लुटियंस दिल्ली की शैली में फिट बैठता था।
निर्माण और उद्घाटन
चर्च का निर्माण 1927 से 1935 तक चला। हालांकि इसे 18 जनवरी 1931 को सार्वजनिक पूजा के लिए खोला गया और 15 फरवरी 1931 को लाहौर के बिशप ने इसे समर्पित किया। इसे वायसराय चर्च इसलिए कहा जाता है क्योंकि लॉर्ड इरविन नियमित रूप से यहां प्रार्थना करते थे।
आर्किटेक्चर और विशेषताएं
चर्च धौलपुर के सफेद और लाल बलुआ पत्थर से बना है। इसमें ऊंचे मेहराब, गुंबददार छत और अच्छी वेंटिलेशन है। अंदर 1931 का ऐतिहासिक पाइप ऑर्गन और विभिन्न पेंटिंग्स हैं।
आज का महत्व
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद यह चर्च चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया (CNI) के दिल्ली डायोसीज का हिस्सा बन गया। अब यह दिल्ली की औपनिवेशिक विरासत का प्रतीक होने के साथ-साथ विभिन्न समुदायों का आध्यात्मिक केंद्र भी है। क्रिसमस और ईस्टर पर यहां विशेष उत्सव आयोजित होते हैं।