
नई दिल्ली।
दुनिया की ‘फार्मेसी’ कहे जाने वाले भारत में दवाइयों के दाम जल्द घट सकते हैं। इसकी वजह चीन में दवा उद्योग से जुड़े कच्चे माल यानी एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट्स (API) और इंटरमीडिएट्स की कीमतों में आई भारी गिरावट है। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह ट्रेंड जारी रहा, तो भारत में जेनेरिक दवाओं की लागत कम होगी और इसका सीधा फायदा मरीजों को मिल सकता है।
API की कीमतों में 40% तक की गिरावट
इंडस्ट्री सूत्रों के मुताबिक, चीन में बीते कुछ महीनों में API की कीमतों में 35–40% तक की कटौती दर्ज की गई है। यह गिरावट इतनी तेज है कि कई मामलों में दाम लागत से भी नीचे चले गए हैं।
कुछ प्रमुख उदाहरण—
पैरासिटामोल API:
महामारी के दौरान ₹900 प्रति किलो
अब घटकर ₹250 प्रति किलो
अमोक्सिसिलिन (Amoxicillin):
₹3,200 से गिरकर ₹1,800 प्रति किलो
क्लैवुलानेट (Clavulanate):
₹21,000 से घटकर ₹14,500 प्रति किलो
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह कमी लंबे समय तक बनी रहती है, तो दवा कंपनियों के लिए उत्पादन लागत में बड़ी राहत मिलेगी।
क्यों गिरे चीन में दाम?
कोरोना महामारी के बाद चीन ने फार्मा सेक्टर में बड़े पैमाने पर निवेश किया और अपनी उत्पादन क्षमता जरूरत से कहीं ज्यादा बढ़ा दी।
इसका नतीजा यह हुआ कि बाजार में ओवरसप्लाई हो गई और कंपनियां माल निकालने के लिए कीमतें घटाने को मजबूर हो गईं।
चीन के फार्मा बाजार पर नजर रखने वाले जानकार मेहुल शाह के मुताबिक,
“चीन में सप्लाई इतनी ज्यादा हो चुकी है कि कीमतों में और गिरावट की संभावना बनी हुई है। इसका असर वैश्विक बाजारों पर साफ दिख रहा है।”
क्या मरीजों को मिलेगा सीधा फायदा?
फार्मा विशेषज्ञों का कहना है कि API सस्ते होने से दवाओं का मैन्युफैक्चरिंग खर्च जरूर घटेगा, लेकिन दाम तुरंत कम होंगे या नहीं, यह कई बातों पर निर्भर करता है—
दवा पर सरकारी मूल्य नियंत्रण
कंपनियों की मौजूदा इन्वेंट्री
प्रतिस्पर्धा और मांग
हालांकि, लंबी अवधि में जेनेरिक दवाओं के दाम घटने की संभावना मजबूत मानी जा रही है।
चीन पर भारत की निर्भरता बनी चिंता
भारत अपनी दवा जरूरतों के लिए करीब 70% API चीन से आयात करता है। यही वजह है कि चीन में आई यह गिरावट भारत के फार्मा सेक्टर पर सीधा असर डाल रही है।
लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है।
उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि चीन द्वारा बेहद सस्ते दाम पर API बेचने से भारतीय कच्चा माल निर्माता कंपनियों को नुकसान हो रहा है। घरेलू कंपनियों के लिए इतनी कम कीमत पर टिके रहना मुश्किल होता जा रहा है।
आगे क्या?
विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन की यह आक्रामक कीमत नीति भारत के लिए दोहरी चुनौती है—
एक तरफ मरीजों को सस्ती दवाओं की उम्मीद
दूसरी तरफ घरेलू API उद्योग पर दबाव
सरकार के लिए अब संतुलन बनाना जरूरी होगा, ताकि सस्ती दवाओं का लाभ भी मिले और आत्मनिर्भर भारत के तहत विकसित हो रहा फार्मा इकोसिस्टम भी कमजोर न पड़े।