
ग्वालियर: इतिहास के पन्नों में सिंधिया राजघराने की सेना का नाम हमेशा गर्व के साथ लिया जाता है। 17वीं और 18वीं शताब्दी में सिंधिया परिवार ने अपनी सेना को अत्याधुनिक हथियारों से लैस कर मुगलों को चुनौती दी। उस समय के यूरोपीयन हथियारों से लेकर जर्मनी से मंगवाई गई मशीनगन और लंबी नाल वाली बंदूकें, सभी ने सिंधिया सेना को शत्रुओं के लिए डर का कारण बना दिया।
ग्वालियर स्थित जय विलास पैलेस म्यूजियम में आज भी उन हथियारों को संरक्षित किया गया है। म्यूजियम में आगंतुक न केवल इन हथियारों को देख सकते हैं, बल्कि इनके इस्तेमाल और महत्व के बारे में विस्तृत जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं।
नवीनतम सैन्य तकनीकों पर जोर
इतिहास के दस्तावेज बताते हैं कि 18वीं शताब्दी के मध्य में श्रीमंत राणे राव सिंधिया के नेतृत्व में सेना का आधुनिकीकरण किया गया। इसके लिए जनरल बेन्नोइट डी बोइन्गे की मदद ली गई, जिन्होंने यूरोपीय तकनीक और हथियारों को मराठा युद्धक रणनीतियों के साथ जोड़ा।
मशीनगन से लेकर यूरोपीयन पिस्टल तक
सिंधिया सेना के पास उस समय की आधुनिक मशीनगन, लंबी नाल की बंदूकें और यूरोपीयन शैली की पिस्टल थीं। इनमें लंदन निर्मित छह चक्र वाले रिवॉल्वर, डेरिनजर पिस्टल, पर्कशन पिस्तौल और दो-चार नाल की पिस्टल शामिल हैं। इन हथियारों ने युद्ध में उनकी रणनीति को बेहद प्रभावशाली बनाया।
पारंपरिक हथियारों का भी इस्तेमाल
आधुनिक हथियारों के साथ-साथ सेना में तीर-धनुष, तलवार और कटार जैसी पारंपरिक हथियारों का भी इस्तेमाल किया जाता था। ये हथियार आज भी म्यूजियम में संरक्षित हैं।
अंग्रेजों की चुनौती
लेखक राशिद किदवई के अनुसार, माधो राव सिंधिया अपनी सेना को मॉडर्न बनाने में लगे थे, लेकिन अंग्रेज इसके विरोधी थे और हथियारों की खरीद में बार-बार अड़ंगा डालते थे।
प्रथम विश्व युद्ध में योगदान
सिंधिया सेना ने प्रथम विश्व युद्ध में भी भाग लिया और टोंगा, केन्या, तंजानिया तथा स्वेज नहर की रक्षा के लिए मिस्त्र भेजा गया। इस दौरान सिंधिया महाराज ने एक अस्पताल भी बनवाया था।
आज भी जय विलास पैलेस के म्यूजियम में संरक्षित ये हथियार सिंधिया परिवार की सैन्य ताकत और दूरदर्शिता का जीवंत उदाहरण हैं।