
पटना: बिहार की राजनीति में पार्टी फंड का खेल हमेशा चुनाव परिणाम को प्रभावित करता रहा है। वर्ष 2024-25 में यह खेल और स्पष्ट हो गया है। नीतीश कुमार की जेडीयू को वर्ष 2023-24 में महज 1.81 करोड़ रुपये का चंदा मिला था, जो अगले वित्तीय वर्ष में बढ़कर 18.69 करोड़ रुपये तक पहुँच गया। वहीं, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने भी अपनी साख साबित करते हुए 11 करोड़ रुपये का चंदा जुटाया।
जेडीयू की यह भारी बढ़ोतरी उनकी विश्वसनीयता और राजनीतिक मजबूती का संकेत है। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में भारी हार झेलने के बाद जेडीयू ने 2024 के लोकसभा चुनाव में 12 सीटें जीतकर अपनी वापसी की। उद्योगपतियों और कंपनियों ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में जेडीयू पर भरपूर भरोसा जताया। जेडीयू को प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट से 10 करोड़, प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट से 5 करोड़ और समाज इलेक्टोरल ट्रस्ट एसोसिएशन से 2 करोड़ रुपये मिले।
वहीं, चिराग पासवान ने लोजपा (रामविलास) को मजबूती के नए आयाम दिए हैं। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने एक सीट जीतने के बावजूद दर्जनों उम्मीदवारों को दूसरे स्थान पर पहुंचाकर प्रभावशाली प्रदर्शन किया। 2024 में पांच सीटों पर लोजपा (रामविलास) ने 100 प्रतिशत जीत दर्ज की, जिससे चिराग पासवान की साख और बढ़ी।
2025 विधानसभा चुनाव में भी चिराग पासवान का नेतृत्व पार्टी के लिए निर्णायक साबित हुआ। एनडीए के लिए लोजपा (रामविलास) ने 29 सीटों पर चुनाव लड़ा और 19 जीतकर बिहार की चौथी बड़ी पार्टी बन गई। यह सफलता न केवल बिहार की जनता में, बल्कि उद्योगपतियों और देश के राजनीतिक दिग्गजों में भी पार्टी की नई छवि का परिचायक बनी।
इस तरह, चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) कॉरपोरेट जगत की नई पसंद बन गई है, जबकि जेडीयू को सत्ता पक्ष की भूमिका और बढ़ती साख के चलते भारी फंडिंग का लाभ मिला।