Tuesday, December 23

अरावली पर ‘100 मीटर’ की परिभाषा से खतरा, विशेषज्ञों ने चेताया—तबाही का रास्ता खुल सकता है

 

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नई दिल्ली: भारत की सबसे प्राचीन पर्वतमाला अरावली एक बार फिर गंभीर विवाद के केंद्र में है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को मंजूरी दिए जाने के बाद पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों की चिंताएं बढ़ गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि केवल ऊंचाई के आधार पर अरावली को परिभाषित करना पारिस्थितिकी के लिए घातक साबित हो सकता है।

 

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की सिफारिशों के आधार पर यह स्पष्ट किया है कि स्थानीय भू-भाग से कम से कम 100 मीटर ऊंचे भू-भाग को ही ‘अरावली पहाड़ी’ माना जाएगा। साथ ही, यदि दो या अधिक ऐसी पहाड़ियां 500 मीटर के दायरे में स्थित हैं, तो उनके बीच की भूमि को भी अरावली का हिस्सा माना जाएगा।

 

विशेषज्ञों की चिंता: छोटी पहाड़ियां भी हैं ढाल

 

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि इस परिभाषा से 100 मीटर से कम ऊंची हजारों पहाड़ियां संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी। भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार, अरावली क्षेत्र में मौजूद 12,081 पहाड़ियों में से केवल 1,048 ही 100 मीटर के मानदंड को पूरा करती हैं। यानी 90 प्रतिशत से अधिक पहाड़ियां कानूनी सुरक्षा से वंचित हो सकती हैं।

 

दिल्ली विश्वविद्यालय के जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सना रहमान कहती हैं कि “अरावली सिर्फ ऊंची पहाड़ियों का नाम नहीं है। इसकी घाटियां, रिज, जंगल, तालाब और निचले हिस्से मिलकर एक जीवंत पारिस्थितिक तंत्र बनाते हैं। अगर 40 मीटर ऊंची पहाड़ी भी है, तो वह लू की हवाओं को रोकने, जल संरक्षण और जैव विविधता के लिए बेहद अहम है।”

 

32 करोड़ वर्ष पुरानी विरासत खतरे में

 

अरावली पर्वतमाला लगभग 650 किलोमीटर में फैली हुई है और इसे दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में गिना जाता है। यह थार रेगिस्तान के पूर्व की ओर फैलाव को रोकने वाली प्राकृतिक ढाल है और भूजल पुनर्भरण, जलवायु संतुलन तथा जैव विविधता संरक्षण में अहम भूमिका निभाती है। चंबल, साबरमती और लूणी जैसी प्रमुख नदियों का स्रोत भी यही पर्वतमाला है।

 

सिर्फ खनन रोकना काफी नहीं

 

हालांकि सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार ने अनियंत्रित खनन को पारिस्थितिकी के लिए गंभीर खतरा बताया है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि केवल माइनिंग पर रोक लगाना पर्याप्त नहीं है। रियल एस्टेट निर्माण, सड़कों के लिए पहाड़ियों को काटना, प्राकृतिक वनस्पति का विनाश और वन्यजीव गलियारों का टूटना भी अरावली को उतना ही नुकसान पहुंचा रहा है।

 

केंद्रीय मंत्री का बयान बनाम जमीनी हकीकत

 

केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव का कहना है कि पहाड़ियों के आधार से 100 मीटर तक का पूरा क्षेत्र संरक्षित रहेगा और वहां किसी भी तरह की खुदाई नहीं होगी। लेकिन विशेषज्ञों का तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट की परिभाषा के अनुसार 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियां ‘अरावली’ मानी ही नहीं जाएंगी, जिससे उनके संरक्षण का रास्ता बंद हो जाएगा।

 

निष्कर्ष

 

विशेषज्ञों का साफ कहना है कि यदि अरावली को केवल कानूनी परिभाषाओं और ऊंचाई के आंकड़ों तक सीमित किया गया, तो यह भारत की इस प्राचीन प्राकृतिक विरासत के अस्तित्व के लिए घातक होगा। अरावली को बचाने के लिए समग्र और पारिस्थितिक दृष्टिकोण अपनाना अब समय की मांग है।

 

 

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