
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा असम के इतिहास को लेकर दिए गए हालिया बयान के बाद आज़ादी से ठीक पहले रची गई एक पुरानी ब्रिटिश साजिश फिर चर्चा में आ गई है। पीएम मोदी ने दावा किया है कि वर्ष 1946 में अंग्रेज़ों और मुस्लिम लीग की एक योजना थी, जिसके तहत असम को अविभाजित बंगाल या पूर्वी पाकिस्तान (जो बाद में बांग्लादेश बना) में शामिल किया जाना था। इस बयान के साथ ही कांग्रेस की भूमिका पर भी सियासी बहस तेज हो गई है।
क्या था 1946 का कैबिनेट मिशन प्लान
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार ने 24 मार्च, 1946 को भारत में कैबिनेट मिशन भेजा। इसमें तीन ब्रिटिश मंत्री शामिल थे। आधिकारिक तौर पर यह मिशन भारत को स्वशासन की दिशा में ले जाने के लिए आया था, लेकिन इसके प्रस्तावों ने आगे चलकर देश विभाजन की नींव रखी।
कैबिनेट मिशन प्लान के तहत भारत को तीन स्तरों में बांटने का प्रस्ताव था—
- एक केंद्रीय संघ (Federal Union)
- प्रांतों को स्वायत्तता
- प्रांतों के समूह (Grouping of Provinces)
इसी तीसरे बिंदु के तहत असम को बंगाल के साथ पूर्वी प्रांतों के समूह में शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया, जो आगे चलकर असम को मुस्लिम बहुल क्षेत्र के साथ जोड़ने की राह खोल सकता था। मुस्लिम लीग ने इस योजना को स्वीकार कर लिया, जबकि कांग्रेस ने इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं किया।
असम ने किया जबरदस्त विरोध
जैसे ही यह प्रस्ताव असम पहुंचा, तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई ने इसका तीखा विरोध किया। उन्होंने साफ कहा कि असम को बंगाल के साथ जोड़ना अस्वीकार्य है। बोरदोलोई ने प्रदेश कांग्रेस नेताओं को महात्मा गांधी के पास भेजकर यह संदेश भिजवाया कि यदि जरूरत पड़ी तो असम संविधान सभा से भी हटने को तैयार है।
नेहरू ने भी माना असम का विरोध
उस समय जवाहरलाल नेहरू ने भी यह समझ लिया था कि कैबिनेट मिशन प्लान के जरिए अंग्रेज़ और जिन्ना असम पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। 10 जुलाई, 1946 को बॉम्बे में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में नेहरू ने कहा था कि “असम किसी भी हालत में बंगाल के साथ ग्रुपिंग स्वीकार नहीं करेगा और अंततः यह योजना सफल नहीं होगी।”
पीएम मोदी का कांग्रेस पर आरोप
प्रधानमंत्री मोदी ने गुवाहाटी में एक रैली के दौरान कांग्रेस पर तीखा हमला करते हुए कहा कि आजादी से पहले ही कांग्रेस असम की पहचान से समझौता करने को तैयार थी। उन्होंने आरोप लगाया कि अंग्रेज़ों और मुस्लिम लीग के साथ मिलकर असम को पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने की साजिश रची गई थी।
पीएम मोदी ने कहा कि गोपीनाथ बोरदोलोई ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ खड़े होकर असम को बचाया। यदि उन्होंने विरोध न किया होता, तो आज असम भारत का हिस्सा न होता।
‘बोरदोलोई ने असम की पहचान बचाई’
प्रधानमंत्री ने बोरदोलोई को असम का रक्षक बताते हुए कहा कि उन्होंने न केवल असम को देश से अलग होने से बचाया, बल्कि उसकी सांस्कृतिक और भौगोलिक पहचान को भी सुरक्षित रखा। पीएम मोदी ने यह भी आरोप लगाया कि आजादी के बाद कांग्रेस ने वोट बैंक की राजनीति के तहत घुसपैठ को बढ़ावा दिया, जिससे असम की जनसांख्यिकी, सुरक्षा और संसाधनों को गंभीर नुकसान पहुंचा।
निष्कर्ष
1946 का कैबिनेट मिशन प्लान भले ही इतिहास का हिस्सा हो, लेकिन प्रधानमंत्री के बयान ने यह साफ कर दिया है कि असम की पहचान और उसके संघर्ष की कहानी आज भी राजनीतिक और ऐतिहासिक बहस का अहम विषय बनी हुई है।