Tuesday, December 23

परमाणु ऊर्जा में निजी कंपनियों की एंट्री: समय की मांग या सुरक्षा चुनौती? 5 अहम सवाल

 

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नई दिल्ली: भारत की ऊर्जा नीति में बड़ा और दूरगामी बदलाव लाते हुए सस्टेनेबल हानेंसिंग ऐंड अडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (SHANTI) बिल संसद से पारित हो गया और इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई। इस कानून के तहत अब निजी कंपनियां सरकार से लाइसेंस लेकर परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित और चला सकेंगी। सरकार का दावा है कि यह भारत को साफ, भरोसेमंद और आत्मनिर्भर ऊर्जा व्यवस्था की ओर ले जाएगा।

 

न्यूक्लियर ऊर्जा में बदलाव:

पहले तक परमाणु ऊर्जा उत्पादन का अधिकार केवल केंद्र और उसकी कंपनियों तक सीमित था। SHANTI बिल के बाद टाटा पावर, अदाणी, L&T जैसी निजी कंपनियां भी परमाणु संयंत्र चला सकेंगी। इस पहल का उद्देश्य 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करना है।

 

सरकार का नियंत्रण:

यूरेनियम और थोरियम के खनन और उच्च-स्तरीय परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन पर सरकार का नियंत्रण पूरी तरह बरकरार रहेगा। खर्च हुए ईंधन की रीसाइक्लिंग और ठंडा करने के बाद सरकार को सौंपना जरूरी होगा।

 

हादसे की स्थिति में जिम्मेदारी:

संयंत्र संचालक प्रति घटना 300 मिलियन विशेष ड्रॉइंग राइट्स तक मुआवजे का जिम्मेदार होगा। इसके बाद केंद्र सरकार न्यूक्लियर लाइबिलिटी फंड से भुगतान करेगी। युद्ध, आतंकवाद या अत्यंत असाधारण प्राकृतिक आपदाओं में संचालक को छूट दी गई है।

 

रेगुलेटरी बोर्ड की भूमिका:

एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड अब स्पष्ट कानून के तहत संयंत्रों का निरीक्षण, घटनाओं की जांच और सुरक्षा मानकों की पालना सुनिश्चित करेगा। बोर्ड सुरक्षा मानकों पर खरे न उतरने वाली इकाइयों के संचालन को रद्द कर सकता है।

 

विपक्ष का दृष्टिकोण:

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने निजी कंपनियों की एंट्री पर चिंता जताई कि मुनाफे की सोच कहीं सुरक्षा मानकों को कमजोर न कर दे। सरकार ने स्पष्ट किया कि कड़े नियम, लाइसेंस प्रणाली और सरकारी नियंत्रण किसी भी जोखिम को न्यूनतम करेंगे।

 

5 अहम सवाल जो आपके लिए जरूरी हैं:

 

  1. क्या निजी कंपनियों की एंट्री सुरक्षा मानकों को प्रभावित करेगी?
  2. संयंत्र संचालकों की जिम्मेदारी और मुआवजा सीमा क्या है?
  3. सरकारी नियंत्रण में कौन-कौन सी गतिविधियां रहेंगी?
  4. एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड की निगरानी कितनी प्रभावी होगी?
  5. 2047 तक 100 गीगावॉट लक्ष्य हासिल करना कितना संभव है?

 

SHANTI बिल के साथ भारत की ऊर्जा नीति में नई क्रांति की राह खुल गई है, लेकिन विशेषज्ञों और विपक्ष के मुताबिक सुरक्षा और नियामक मानकों पर निगरानी जरूरी बनी हुई है।

 

 

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