
नई दिल्ली: शेयर बाजार नियामक SEBI ने म्यूचुअल फंड नियमों में बड़ा बदलाव किया है। 17 दिसंबर को जारी नए नियमों के तहत Expense Ratio यानी फंड प्रबंधन पर होने वाले खर्चों का ढांचा नया रूप ले चुका है। अब निवेशकों को यह साफ-साफ पता चलेगा कि उनके पैसों पर असल में कितना खर्च हो रहा है।
बेस एक्सपेंस रेशियो (BER) की शुरुआत
मुख्य बदलाव एक्सपेंस रेशियो फ्रेमवर्क में किया गया है और इसे अब बेस एक्सपेंस रेशियो (BER) नाम दिया गया है। SEBI ने स्पष्ट किया है कि अब STT, CTT, GST, स्टैंप ड्यूटी, सेबी फीस और एक्सचेंज चार्जेज जैसी चीजें BER में शामिल नहीं होंगी। ये सभी चार्ज अब अलग से वसूले जाएंगे। कुल खर्च यानी TER (Total Expense Ratio) अब बनेगा: BER + ब्रोकरेज + सरकारी टैक्स और फीस।
कितना फर्क पड़ेगा?
विशेषज्ञों का कहना है कि खर्चों को अलग दिखाने से निवेशकों के फैसले पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा। लंबे समय तक निवेश करने वाले लोग फंड के प्रदर्शन और जोखिम पर ज्यादा ध्यान देते हैं। छोटे-मोटे खर्चों में 0.05% या 0.10% की कटौती निवेश का फैसला बदलने में अहम नहीं होगी।
असली राहत कितनी?
वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार के अनुसार, सरकारी टैक्स को अलग दिखाने से ऊपरी तौर पर खर्च कम नजर आएगा, लेकिन कुल बचत केवल मामूली होगी। असली राहत दो मुख्य तरीकों से मिलेगी:
- एग्जिट लोड से जुड़े अतिरिक्त05% खर्च को हटाना
- ब्रोकरेज की लिमिट कम करना
इन बदलावों से निवेशकों को कुल मिलाकर करीब 0.06% से 0.08% की असली बचत हो सकती है।
निवेशक कैसे ट्रैक करें खर्चे?
धीरेंद्र कुमार की सलाह है कि निवेशक BER और TER दोनों को देखें। केवल एक को देखकर गलतफहमी हो सकती है। उनका कहना है कि इस बदलाव से एक्टिव और पैसिव फंड्स की दर पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा, लेकिन डायरेक्ट प्लान्स पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है।
नोट: निवेशक किसी भी निर्णय से पहले अपने वित्तीय सलाहकार से सलाह अवश्य लें, क्योंकि म्यूचुअल फंड की परिस्थितियां समय के साथ बदल सकती हैं।