
ढाका: बांग्लादेश में एक बार फिर धार्मिक असहिष्णुता की भयावह तस्वीर सामने आई है। गुरुवार की रात कट्टरपंथियों की भीड़ ने हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की पीट-पीटकर हत्या कर दी। उसकी लाश को पेड़ से बांधकर जला दिया गया। यह घटना न केवल मानवता के खिलाफ अपराध है, बल्कि धार्मिक सहिष्णुता और कानून व्यवस्था की संवेदनशीलता पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।
प्रसिद्ध बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इस घटना के पीछे की बड़ी साजिश का खुलासा किया है। उनके अनुसार दीपू चंद्र दास एक फैक्ट्री में कार्यरत थे, जहाँ उनके मुस्लिम सहकर्मी ने व्यक्तिगत द्वेष के चलते उन पर पैगंबर के अपमान का झूठा आरोप लगा दिया। दीपू ने इस मामले की जानकारी पुलिस को दी थी, लेकिन पुलिस ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
तस्लीमा नसरीन ने बताया कि दीपू को पहले भीड़ से बचाने के लिए पुलिस हिरासत में लिया गया था, लेकिन यह सुरक्षा उन्हें बचाने के लिए पर्याप्त नहीं साबित हुई। कुछ समय बाद वह फिर से कट्टरपंथियों के हाथों फंस गए और बेरहमी से मारे गए।
दीपू चंद्र दास अपने परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य थे। उनकी कमाई से उनके विकलांग पिता, मां, पत्नी और बच्चा जीवन यापन करते थे। अब उनके परिवार पर भारी संकट आ गया है, और उनके पास न सुरक्षा है, न ही बचाव के लिए कोई साधन।
तस्लीमा ने इस घटना को “जेहादी उत्सव” करार दिया और सवाल उठाया कि क्या पुलिस ने जानबूझकर दीपू को कट्टरपंथियों के हवाले कर दिया, या फिर जेहादी दबाव में ऐसा हुआ।
यह घटना धार्मिक असहिष्णुता, सामाजिक असमानता और कानून व्यवस्था की विफलता की चेतावनी है। बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना अब और भी आवश्यक हो गया है।