
नई दिल्ली: आज से 10-15 साल पहले चीन भी भारत की तरह प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा था। औद्योगिक विकास, वाहनों का धुआं, कोयला जलाना और फसल जलाना प्रमुख वजहें थीं। PM2.5 स्तर बढ़ने से शहरों की हवा जहरीली हो गई थी।
इलेक्ट्रिक वाहनों और कोयले में कटौती
2008 बीजिंग ओलंपिक के बाद चीन ने प्रदूषण पर विशेष ध्यान दिया। 2010 के आसपास इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को अपनाने पर जोर दिया गया। शेन्जेन में 2017 तक 16,000 से ज्यादा बसें पूरी तरह इलेक्ट्रिक बन गईं। साथ ही 2013-2017 के बीच कोयले के इस्तेमाल में कमी की गई। परिणामस्वरूप चीन के लगभग 80% हिस्से में हवा की गुणवत्ता बेहतर हुई।
स्मार्ट टेक्नोलॉजी से 24/7 निगरानी
चीन ने प्रदूषण पर काबू पाने के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी का जमकर इस्तेमाल किया। देशभर में हजारों एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन लगाए गए। ड्रोन और सैटेलाइट की मदद से प्रदूषण के स्रोतों की पहचान हुई। AI और बिग डेटा के इस्तेमाल से यह पता लगाया गया कि प्रदूषण कहां और कब बढ़ सकता है।
लोगों को मोबाइल ऐप्स के जरिए रियल-टाइम में हवा की जानकारी मिली और फैक्ट्रियों में स्मार्ट सेंसर लगाए गए। यदि कोई फैक्ट्री तय सीमा से अधिक प्रदूषण फैलाती, तो अलर्ट तुरंत मिलता।
भारत के लिए सबक
भारत की वर्तमान स्थिति 2000 के दशक के अंत में चीन जैसी है। भारत को भी चीन की तरह सख्त उत्सर्जन नियम लागू करने, स्वच्छ ईंधन अपनाने, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने और स्मार्ट मॉनिटरिंग सिस्टम लगाने की जरूरत है। इससे वायु प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है और लोगों की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।