
वाराणसी: पीएम नरेंद्र मोदी के प्रयासों का असर अब बनारस में साफ नजर आ रहा है। रामनगर बंदरगाह के विकास और इनलैंड वाटरवेज के विस्तार के बाद, अब उत्तर भारत के लोग बड़ी नावें, मोटरबोट और क्रूज खरीदने के लिए दूर-दूर नहीं जाते। बनारस अब खुद निर्माण और मरम्मत का केंद्र बन चुका है।
बड़े नाव निर्माण का केंद्र बनारस
शिप निर्माण कंपनी के प्रमुख विनय कुमार सुमन ने बताया कि पहले बड़े नावों के लिए मुंबई, गुजरात या चेन्नई का रुख करना पड़ता था। लेकिन अब बनारस में ही स्थानीय स्तर पर सर्टिफाइड शिपिंग कंपनी के तहत बड़े नाव और क्रूज का निर्माण हो रहा है। यह कदम न केवल उत्तर भारत के जल पर्यटन को बढ़ावा देगा, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा कर रहा है।
स्थानीय कामगारों को 95% रोजगार
निर्माण कार्य में शामिल 95% कामगार स्थानीय हैं। इनमें फिटर, वेल्डर, मिस्त्री, इंटीरियर डिजाइनर और बढ़ई शामिल हैं। पहले ये कामगार मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में जाते थे, लेकिन अब उत्तर भारत का पहला शिपयार्ड बनारस में ही संचालित हो रहा है।
जलमार्ग से वितरण, दक्षिण एशिया तक विस्तार
इन बड़े नावों और क्रूजों को गंगा के रास्ते पूर्वोत्तर के राज्यों और बंगाल की खाड़ी तक पहुंचाया जा रहा है। छोटे नावों को ट्रकों से भेजा जाता है, लेकिन बड़े पैसेंजर और कार्गो शिप सीधे गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी के मार्ग से पूर्वोत्तर राज्यों और दक्षिण एशियाई देशों जैसे कंबोडिया, थाईलैंड और बांग्लादेश तक डिलीवर किए जा सकते हैं।
जल पर्यटन और आर्थिक विकास में नई उड़ान
रामनगर बंदरगाह और इनलैंड वाटरवेज परियोजनाओं के कारण पर्यटन और माल ढुलाई दोनों में वृद्धि हो रही है। अब पर्यटक बनारस में ही बड़े नावों और क्रूजों का आनंद ले सकते हैं, और उत्तर भारत में शिप निर्माण क्षेत्र नए रोजगार और आर्थिक विकास का बड़ा केंद्र बनता जा रहा है।