Saturday, November 8

अम्मी-अब्बू… आपके सपने पूरे नहीं कर पाऊंगा! नीट की तैयारी कर रहे छात्र ने फांसी लगाकर दी जान

कानपुर (संवाददाता): यूपी के कानपुर से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। नीट (NEET) की तैयारी कर रहे 21 वर्षीय छात्र मो. आन ने शुक्रवार को अपने हॉस्टल के कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। मरने से पहले उसने जो सुसाइड नोट लिखा, उसे पढ़कर हर किसी की आंखें नम हो गईं। उसमें लिखा था —
“अम्मी-अब्बू, माफ करना… मैं बहुत तनाव में हूं। आपके सपने पूरे नहीं कर पाऊंगा। मेरी मौत के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है।”

📍 चार दिन पहले ही आया था हॉस्टल

मूल रूप से रामपुर के भंवरका गांव निवासी मो. नजीर का बेटा मो. आन मेडिकल की प्रवेश परीक्षा नीट की तैयारी कर रहा था। वह कानपुर के हितकारी नगर (रावतपुर थाना क्षेत्र) स्थित एक हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा था। जानकारी के अनुसार, वह सिर्फ चार दिन पहले ही हॉस्टल में रहने आया था।

🕌 जुमे की नमाज के लिए नहीं गया

शुक्रवार दोपहर उसके रूम पार्टनर इमदाद हसन ने उसे जुमे की नमाज के लिए चलने को कहा, लेकिन मो. आन ने मना कर दिया। जब इमदाद नमाज पढ़कर लौटा, तो उसने कमरे का दरवाजा खटखटाया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। कई बार आवाज देने पर भी दरवाजा नहीं खुला।

🚨 पुलिस ने तोड़ा दरवाजा, पंखे से लटकता मिला शव

इमदाद ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। मौके पर पहुंची पुलिस और फोरेंसिक टीम ने दरवाजा तोड़ा तो अंदर का नजारा भयावह था — मो. आन का शव पंखे से फंदे के सहारे लटका हुआ मिला। पास में रखा एक सुसाइड नोट उसकी मानसिक स्थिति और तनाव की गवाही दे रहा था।

💔 परिवार में मचा कोहराम

पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और परिजनों को सूचित किया। बेटे की मौत की खबर मिलते ही रामपुर स्थित घर में कोहराम मच गया। मां-बाप का रो-रोकर बुरा हाल है।
थाना प्रभारी मनोज मिश्रा ने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।

🧠 तनाव में झुलसते युवा — चिंता का विषय

यह घटना फिर से उस सवाल को उठाती है कि आखिर क्यों मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र इतने तनाव में आ जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना, माता-पिता की संवादशीलता बढ़ाना, और काउंसलिंग सुविधाएं उपलब्ध कराना अब बेहद जरूरी हो गया है।
🕯️ “अम्मी-अब्बू, माफ करना…” — यह आखिरी पंक्ति न सिर्फ एक बेटे की पीड़ा है, बल्कि उस व्यवस्था पर सवाल भी है, जो सपनों का बोझ इतना बढ़ा देती है कि जिंदगी हार मान लेती है।

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