
भारत-रूस संबंधों में फिर एक नई मजबूती आई है। हाल के वर्षों में पाकिस्तान और रूस के बीच संबंध बढ़ने के बावजूद, यह भारत और रूस के दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी की गहराई और विश्वास के स्तर तक नहीं पहुंचे हैं। रूस ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पाकिस्तान के साथ सहयोग भारत के हितों की कीमत पर नहीं करेगा और उसे ऐसे घातक हथियार कभी नहीं देगा जो भारत के लिए खतरनाक हो सकते हैं।
शहबाज शरीफ से मुलाकात नहीं
हाल ही में तुर्कमेनिस्तान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय शांति एवं विश्वास मंच में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलने का मौका नहीं मिला। पुतिन उस समय तुर्की के राष्ट्रपति के साथ बैठक में व्यस्त थे। यह संकेत है कि रूस की प्राथमिकताएं स्पष्ट रूप से भारत के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी पर केंद्रित हैं।
रक्षा विशेषज्ञों की राय
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, रूस भारत का सबसे भरोसेमंद रक्षा साझेदार है। एस-400 वायु रक्षा प्रणाली और S-500 जैसे हथियारों के मामले में रूस ने भारत को निरंतर समर्थन दिया है। पेट्र टोपीचांकोव जैसे दक्षिण एशिया विशेषज्ञों का मानना है कि रूस-भारत की दोस्ती किसी तीसरे पक्ष, जैसे पाकिस्तान, से प्रभावित नहीं हो सकती।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
1947 से लेकर आज तक रूस और भारत के संबंधों ने कई दौर देखे हैं। सोवियत तानाशाह स्टालिन ने पाकिस्तान के गठन पर कभी खास ध्यान नहीं दिया और हमेशा भारत के साथ मजबूत संबंध बनाए रखने पर जोर दिया। 1971 में भारत-सोवियत संघ के बीच हुई मैत्री और सहयोग संधि ने भारत को पाकिस्तान के साथ युद्ध में निर्णायक ताकत दी।
पाकिस्तान के लिए सीमित सहयोग
हालांकि रूस ने पाकिस्तान को MI-35 हमलावर हेलीकॉप्टर और कुछ छोटे हथियार प्रदान किए हैं, लेकिन एस-400, Su-35 या Su-57 जैसे रणनीतिक और उन्नत हथियार रूस भारत की प्राथमिकताओं को देखते हुए पाकिस्तान को कभी नहीं देगा। यह स्पष्ट संदेश है कि भारत रूस के लिए सबसे महत्वपूर्ण और भरोसेमंद साझेदार है।
निष्कर्ष: रूस की विदेश नीति और रक्षा साझेदारी स्पष्ट रूप से भारत-केंद्रित है, और पाकिस्तान उसके लिए कभी भारत के हितों के खिलाफ खड़ा नहीं हो सकता।