Monday, December 15

राजस्थान में 15 हजार से अधिक सरकारी कर्मचारियों की नौकरी पर संकट

जयपुर। राजस्थान सरकार के एक बड़े फैसले ने प्रदेश के हजारों सरकारी कर्मचारियों की चिंता बढ़ा दी है। दिव्यांगता प्रमाण-पत्र के आधार पर नियुक्त सभी सरकारी कार्मिकों की पुनः मेडिकल जांच कराने के आदेश जारी किए गए हैं। इस प्रक्रिया से 15 हजार से अधिक कर्मचारी प्रभावित हो सकते हैं, जिनकी नौकरी पर अब अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं।

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फर्जी प्रमाण-पत्र मामलों के बाद सख्ती

सूत्रों के मुताबिक, हाल के दिनों में सरकारी भर्तियों में दिव्यांगता सर्टिफिकेट से जुड़े फर्जी और संदिग्ध मामलों के सामने आने के बाद सरकार ने सख्त रुख अपनाया है। कार्मिक विभाग ने सभी विभागों को निर्देश दिया है कि दिव्यांग कोटे से नियुक्त कर्मचारियों की दोबारा जांच कराई जाए। इसके तहत न केवल हाल में चयनित, बल्कि 5 से 35 साल पहले नियुक्त कर्मचारी भी मेडिकल बोर्ड के समक्ष पेश हो रहे हैं।

40 प्रतिशत दिव्यांगता की शर्त बनी निर्णायक

सरकारी सेवा में दिव्यांग कोटे का लाभ लेने के लिए न्यूनतम 40 प्रतिशत दिव्यांगता अनिवार्य है। पुनः जांच के दौरान कई जिलों में यह तथ्य सामने आया है कि कुछ कर्मचारियों की दिव्यांगता में 5 से 7 प्रतिशत तक का अंतर पाया जा रहा है। अधिकारियों का अनुमान है कि करीब 70 प्रतिशत कर्मचारी इस दायरे में आ सकते हैं। ऐसे में यदि दिव्यांगता प्रतिशत 40 से नीचे पाया गया, तो संबंधित कार्मिक की नौकरी पर सीधा खतरा बन सकता है।

कर्मचारियों में असंतोष, सरकार के फैसले पर सवाल

इस निर्णय के बाद दिव्यांग कर्मचारियों में नाराजगी और असुरक्षा का माहौल है। उनका कहना है कि सरकार को दोबारा मेडिकल जांच के बजाय फर्जी प्रमाण-पत्रों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। वर्षों से सेवा दे रहे कर्मचारियों की पात्रता पर सवाल उठना उनके मनोबल को तोड़ रहा है।

कर्मचारियों का तर्क है कि उनकी नियुक्ति दिव्यांग अधिनियम 1995, 2001 और 2016 के तहत लागू नियमों के अनुसार हुई थी, जबकि अब 2024 के नए सर्कुलर के आधार पर जांच की जा रही है। पुराने और नए मानकों में अंतर के कारण दिव्यांगता प्रतिशत में बदलाव आना स्वाभाविक बताया जा रहा है।

विशेषज्ञों से राय लेने की मांग

पूर्व आरएसएसबी चेयरमैन हरिप्रसाद शर्मा का कहना है कि चयनित दिव्यांग अभ्यर्थियों की चिंताओं को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। सरकार को अंतिम फैसला लेने से पहले विशेषज्ञों से परामर्श करना चाहिए, ताकि ईमानदार कर्मचारियों के साथ अन्याय न हो।

कार्मिक विभाग का स्पष्ट रुख

कार्मिक विभाग के परिपत्र में साफ कहा गया है कि यदि पुनः जांच में दिव्यांगता मानकों में कमी या प्रमाण-पत्र में किसी भी प्रकार की अनियमितता पाई जाती है, तो संबंधित कार्मिक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। साथ ही इसकी जानकारी कार्मिक विभाग और एसओजी को भेजी जाएगी।

कुल मिलाकर, सरकार की यह कार्रवाई जहां व्यवस्था में पारदर्शिता लाने की कोशिश मानी जा रही है, वहीं हजारों दिव्यांग कर्मचारियों के भविष्य को लेकर गंभीर सवाल भी खड़े कर रही है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि सरकार इस संवेदनशील मुद्दे पर संतुलित और न्यायपूर्ण निर्णय कैसे लेती है।

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