
नई दिल्ली: मण्विता मोरे, जो जेनरेशन Z की युवा पीढ़ी की प्रतिनिधि हैं, अपनी पेरेंट्स से शिकायत करती हैं कि वे उनके मानसिक स्वास्थ्य को समझ नहीं पाते। मण्विता बताती हैं कि नई पीढ़ी का जीवन और सोच पुराने जमाने से काफी अलग है।
मां की तुलना में मिली आजादी:
मण्विता की मां मुंबई में पली-बढ़ीं, उन्होंने ग्रेजुएशन किया, लेकिन उन्हें अपनी आजादी उतनी नहीं मिली जितनी अब मण्विता को है। पढ़ाई, करियर और खुद के फैसलों में मण्विता को पूरी आजादी है। मां के जमाने में लड़कियों पर कई पाबंदियां थीं, लेकिन अब मण्विता को अपने पसंद के कपड़े पहनने और अपने फैसले लेने की पूरी आजादी है।
मां ने करियर छोड़कर परिवार को प्राथमिकता दी:
शादी और बच्चों के जन्म के बाद मण्विता की मां को अपनी जॉब छोड़नी पड़ी। घर और बच्चों की जिम्मेदारी ने उनके करियर को प्रभावित किया। वहीं, मण्विता ने पेरेंट्स की अनुमति से अपनी पढ़ाई, खेल और करियर में स्वतंत्रता हासिल की।
बेटियों के साथ भेदभाव खत्म हुआ:
मण्विता बताती हैं कि मां ने उनके बचपन में कभी उन्हें घर के काम थोपे नहीं। उन्हें खेलने और पढ़ाई करने की पूरी आजादी थी। वहीं, पुराने जमाने में लड़कियों को कई जिम्मेदारियां और पाबंदियां झेलनी पड़ती थीं।
जेनरेशन Z की बेबाक सोच:
नई पीढ़ी बेकार की पाबंदियों को बर्दाश्त नहीं करती। वे अपने बड़ों का सम्मान करती हैं, लेकिन सवाल पूछने और जरूरत पड़ने पर बहस करने में भी पीछे नहीं रहतीं। मण्विता इसे आत्मविश्वास मानती हैं, जबकि लोग इसे विद्रोह कहते हैं।
मेंटल हेल्थ को प्राथमिकता:
मण्विता और उनकी पीढ़ी में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर खुलकर बात की जाती है। पहले लोग मानसिक स्वास्थ्य को पागलपन समझते थे, लेकिन अब जेनरेशन Z इसे जरूरी मानती है। मण्विता बताती हैं कि जिम जाना उनके लिए सिर्फ फिटनेस नहीं, बल्कि मेंटल हेल्थ का भी हिस्सा है।
घर में बहस होती है, पर खुद पर भरोसा:
कई बार जिम या अन्य गतिविधियों को लेकर घर में बहस होती है, लेकिन मण्विता अपनी बात पर कायम रहती हैं क्योंकि उन्हें पता है कि यह उनके लिए सही है।
नतीजा:
नई पीढ़ी मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देती है, बेबाक है और अपने फैसलों में आत्मविश्वासी है। माता-पिता और बच्चों के बीच खुली बातचीत ही जेनरेशन गैप को कम करने का सबसे कारगर तरीका है।