
नई दिल्ली। भारत ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ग्रेट निकोबार द्वीप पर दूसरा हवाई अड्डा बनाने का काम शुरू कर दिया है। यह कदम चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं और मलक्का जलडमरूमध्य के पास स्थित समुद्री मार्ग की सुरक्षा के मद्देनजर उठाया गया है। नया हवाई अड्डा न केवल नागरिक उड़ानों के लिए होगा, बल्कि भारतीय नौसेना और वायु सेना के लिए भी डुअल-यूज सुविधा प्रदान करेगा।
रणनीतिक महत्व:
ग्रेट निकोबार, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का हिस्सा है और बंगाल की खाड़ी में स्थित है। यह द्वीप मलक्का जलडमरूमध्य के बेहद करीब है, जो चीन और सुदूर पूर्व के लिए महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है। वर्तमान में द्वीप पर INS Baaz नामक नौसैनिक हवाई अड्डा मौजूद है, जो समुद्री गतिविधियों पर नजर रखता है। नया हवाई अड्डा गैलाथिया खाड़ी में बनाया जा रहा है, जो मलक्का जलडमरूमध्य के और करीब है।
प्रोजेक्ट की जानकारी:
- अनुमानित लागत: 8,573 करोड़ रुपये
- निर्माण एजेंसी: एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI)
- प्रकार: ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा, यानी पूरी तरह नया निर्माण
- डुअल-यूज: नौसेना, UAV (ड्रोन) और वायु सेना के लिए भी उपलब्ध
- हिस्सा: इंटरनेशनल कंटेनर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, जो सिंगापुर को टक्कर देने वाले लॉजिस्टिक्स हब के रूप में विकसित होगा
पर्यावरण और सुरक्षा:
परियोजना से जुड़े पर्यावरणीय मुद्दों को ध्यान में रखते हुए असाधारण शमन उपाय किए गए हैं। भारतीय रक्षा और नागरिक प्रशासन की नजरें इस क्षेत्र पर सतत बनी रहेंगी।
चीन की चिंता:
बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर में चीन लगातार अपनी नौसेना और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की मौजूदगी बढ़ा रहा है। म्यामार के कोको द्वीप पर चीन ने मिलिट्री फैसिलिटी स्थापित की है। भारत के इस कदम से अब इस रणनीतिक क्षेत्र में भारतीय पकड़ और मजबूत होगी, जिससे चीन के दबदबे को कड़ा जवाब मिलेगा।
निष्कर्ष:
ग्रेट निकोबार पर नया हवाई अड्डा भारत की सुरक्षा तैयारियों और समुद्री सामरिक क्षमता को और मजबूत करेगा। मलक्का जलडमरूमध्य में भारतीय नियंत्रण बढ़ने से न केवल रक्षा बल्कि व्यापारिक और लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में भी रणनीतिक लाभ मिलेगा।