Saturday, December 13

डिग्री नहीं, अब स्किल की दौड़: 1990 की तरह भारत एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर

नई दिल्ली। आज की दुनिया में कंपनियों को डिग्री से ज्यादा स्किल की जरूरत है। डिजिटल क्रांति और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के इस दौर में काम करने के तरीके तेजी से बदल रहे हैं। मशीनें रोजमर्रा के कई काम कर रही हैं, और इंसानों से उम्मीद है कि वे रचनात्मक सोचें, तेजी से सीखें और नई परिस्थितियों में खुद को ढाल सकें।

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90 के दशक की सीख:
1990 के दशक में कंप्यूटर क्रांति ने भारत के शिक्षा और रोजगार पर गहरा असर डाला। उस समय कॉलेजों में कंप्यूटर शिक्षा लगभग अनुपस्थित थी। तब NIIT और Aptech जैसे निजी संस्थानों ने युवाओं को कंप्यूटर और प्रोग्रामिंग की बुनियादी स्किल सिखाकर लाखों को रोजगार के अवसर दिए। उस दौर ने यह साबित किया कि कभी-कभी हुनर डिग्री से बड़ा साबित होता है।

स्किल ही सब कुछ नहीं:
हालांकि स्किल जरूरी है, लेकिन केवल यह ही पर्याप्त नहीं है। जिन लोगों के पास मजबूत शैक्षणिक नींव थी – यानी सोचने, समझने और समस्याएं हल करने की क्षमता – वही समय के साथ टिके रहे। कई लोग केवल छोटे कोर्स करके रुक गए और उनकी स्किल समय के साथ अप्रासंगिक हो गई। इसका मतलब है कि डिग्री और स्किल का मेल ही सफलता की कुंजी है।

आज की तस्वीर:
जैसे 90 के दशक में कंप्यूटर क्रांति आई थी, आज AI, डेटा एनालिटिक्स और डिजिटल टेक्नॉलजी हर क्षेत्र में प्रवेश कर चुकी है। नई नौकरियों के रोल – डेटा साइंटिस्ट, प्रॉम्प्ट इंजीनियर, UX डिजाइनर, साइबर सिक्यॉरिटी एनालिस्ट – में कंपनियां अब यह नहीं पूछतीं कि आपने क्या पढ़ा है, बल्कि उनका पहला सवाल होता है: “आप क्या कर सकते हैं?”

सरकार की पहलें और चुनौतियां:
भारत सरकार की स्किल मिशन और डिजिटल इंडिया जैसी पहल सही दिशा में कदम हैं, लेकिन शिक्षा और स्किल के बीच की दूरी अब भी काफी ज्यादा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) में ‘फ्लेक्सिबल लर्निंग’ और ‘लाइफ लॉन्ग एजुकेशन’ की बातें की गई हैं, लेकिन विश्वविद्यालयों ने अपने सिलेबस और पढ़ाने के तरीकों में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया। शिक्षकों को नए दौर के अनुसार प्रशिक्षित करने पर भी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया।

फोकस बदलना होगा:
जैसे 1990 में NIIT ने कंप्यूटर शिक्षा का मार्ग खोला, आज एडटेक संस्थान और डिजिटल कौशल केंद्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन असली बदलाव तभी आएगा जब IITs, IIITs और विश्वविद्यालय अपने कोर्स और पढ़ाने के तरीकों में सुधार करके छात्रों को स्किल सिखाने की पूरी सुविधा देंगे।

शिक्षा का दार्शनिक पक्ष:
नई उम्र के विश्वविद्यालयों की जरूरत है, जो समाज की बदलती जरूरतों को समझें और खुद को सुधारते रहें। शिक्षा एक स्थिर वस्तु नहीं, बल्कि जीवंत प्रणाली है, जो तभी प्रासंगिक रहती है जब वह समाज के साथ विकसित होती रहे।

निष्कर्ष:
भारत फिर एक निर्णायक मोड़ पर है, जैसे 1990 में था। उस समय NIIT ने तकनीकी युग का द्वार खोला, अब समय है कि शिक्षा व्यवस्था स्वयं वह भूमिका निभाए। हुनर बदलती दुनिया की जरूरत है, लेकिन टिकाऊ तरक्की की बुनियाद समझ और शिक्षा ही है।

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