
नई दिल्ली, 12 दिसंबर 2025 (अभिषेक पाण्डेय) – सुप्रीम कोर्ट ने 13 साल से कोमा में पड़े एक युवक के मामले में ऐतिहासिक निर्देश दिए हैं। अदालत ने एक द्वितीयक मेडिकल बोर्ड गठित करने का आदेश दिया है, जो यह तय करेगा कि युवक की जीवन रक्षक प्रणाली और इलाज बंद किया जा सकता है या नहीं। यदि अनुमति मिलती है, तो यह भारत का पहला मामला होगा, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी से निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia) लागू हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जे. बी. परदीवाला और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन शामिल हैं, ने कहा, “यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। युवक की हालत अत्यंत दयनीय है। वह 100 प्रतिशत विकलांग है और हिल-डुल भी नहीं सकता। उसकी देखभाल में गंभीर कमी के कारण बिस्तर पर घाव हो गए हैं, जो इस स्थिति की गम्भीरता को दर्शाते हैं।”
मरीज की स्थिति:
युवक हरीश राणा, जो 31 वर्ष का है, क्वाड्रिप्लेजिया और कोमा की स्थिति में 13 वर्षों से जीवन यापन कर रहा है। डॉक्टरों की रिपोर्ट में कहा गया है कि उसकी ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है, और वर्तमान स्थिति में उसका जीवन अत्यंत दयनीय और असहनीय है।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, “हमें अब कुछ करना होगा। ऐसे हालात में उसे जीवन रक्षक प्रणाली से बांधकर रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।”
अगला कदम:
पीठ ने आदेश दिया कि एम्स (AIIMS) के माध्यम से द्वितीयक मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाए, जो हरीश राणा की स्थिति का पुनः मूल्यांकन करेगा। अदालत ने एम्स से अगले बुधवार तक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया।
यह मामला 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर कदम बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा।