
नई दिल्ली: तमिलनाडु के मदुरै जिले में अरुलमिगु सुब्रमणिया स्वामी मंदिर के पास तिरुपरंकुंद्रम पहाड़ी पर कार्तिगई दीपम विवाद ने राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर हलचल मचा दी है। इस मामले पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को अपने रुख का खुलासा किया। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु के हिंदू स्वयं ही इस विवाद को सुलझाने में सक्षम हैं और जरूरत पड़ने पर ही आरएसएस इसमें हस्तक्षेप करेगा।
‘मामला कोर्ट में है, इसे सुलझने दीजिए’
पीटीआई के अनुसार, मोहन भागवत ने कहा, “तिरुपरंकुंद्रम मामले को अगर आगे बढ़ाने की आवश्यकता पड़ी तो ऐसा किया जाएगा। यह मामला अभी कोर्ट में है। इसे सुलझने दीजिए।” यह बयान आरएसएस के 100 वर्ष पूरे होने पर आयोजित कार्यक्रम में दिया गया।
‘हिंदुओं के जागने से निकलेंगे मनचाहे परिणाम’
भागवत ने आगे कहा, “मैं समझता हूं कि तमिलनाडु में हिंदुओं का जागना ही मनचाहे परिणाम के लिए पर्याप्त है। अगर फिर भी आवश्यकता पड़ी, तो तमिलनाडु में हिंदू संगठन हमें बताएंगे और फिर हम इस पर विचार करेंगे।” उनका मानना है कि इस समय हिंदुओं की सामर्थ्य और जागरूकता के आधार पर ही विवाद का हल निकलेगा।
कार्तिगई दीपम विवाद क्या है
तमिलनाडु की डीएमके सरकार ने मदुरै जिले में एक दरगाह के नजदीक तिरुपरंकुंद्रम पहाड़ी पर मौजूद पत्थर के दीपस्तंभ पर श्रद्धालुओं को पारंपरिक ‘कार्तिगई दीपम’ प्रज्वलित करने की अनुमति देने वाले मद्रास हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। यह आदेश मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन की सिंगल बेंच ने दिया था।
इस विवाद के चलते डीएमके और कांग्रेस समेत अन्य सहयोगी पार्टियों ने लोकसभा स्पीकर को जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग नोटिस भी पेश किया।
निष्कर्ष:
मोहन भागवत के बयान से स्पष्ट है कि आरएसएस फिलहाल विवाद को बढ़ावा नहीं देगा, बल्कि यह मामला हिंदुओं के जागरूकता और सामर्थ्य के आधार पर ही सुलझेगा। संघ का रुख विवाद को शांतिपूर्ण और संतुलित तरीके से हल करने की ओर संकेत करता है।