Thursday, December 11

सुदूर गांव में अकेला मतदाता—वोट की गोपनीयता बचाने के लिए चुनाव आयोग की टीम ने 40 किमी दूर जाकर दिलवाया मतदान

मिजोरम के दूरस्थ और दुर्गम गांव हमावंगबुछुआ में हाल ही में हुए लाई स्वायत्त जिला परिषद (LADC) के चुनाव के दौरान एक अनोखी स्थिति सामने आई। गांव में केवल एक पात्र मतदाता होने के कारण उसकी वोटिंग गोपनीयता चुनौती बन गई थी। मतदाता लालसांगबेरा ने EVM पर मतदान से इनकार करते हुए कहा कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से मतदान की स्थिति में उसका वोट स्पष्ट रूप से उजागर हो जाएगा।

This slideshow requires JavaScript.

गोपनीयता के लिए चुनाव आयोग की टीम ने किया 40 किमी का सफर

लॉन्गटलाई के उपायुक्त डोनी लालरुअत्सांगा के अनुसार, मतदाता की गोपनीयता बनाए रखने के लिए आयोग ने विशेष व्यवस्था की।
नोडल अधिकारी लालनुन्पुइया और सुरक्षाकर्मियों की टीम लॉन्गटलाई शहर से 40 किलोमीटर की कठिन यात्रा करके गांव पहुंची और लालसांगबेरा को डाक मतपत्र (Postal Ballot) के माध्यम से मतदान का अधिकार सुरक्षित रूप से प्रदान किया।

क्यों नहीं किया EVM से मतदान?

EVM प्रत्येक मतदान केंद्र पर उम्मीदवारवार कुल वोटों की संख्या दिखाती है।
ऐसे में जब गांव में केवल एक मतदाता हो, तो मतदान के तुरंत बाद यह स्पष्ट हो जाता कि किस उम्मीदवार को वोट मिला—मतलब गोपनीयता समाप्त।
इसके विपरीत, डाक मतपत्र सभी क्षेत्रों से एकत्रित होकर केंद्रीकृत रूप से गिने जाते हैं, जिससे एकल मतदाता की पसंद बड़े समूह में मिल जाती है और गोपनीयता सुनिश्चित रहती है।

389 की आबादी वाला गांव, पर वोटर सिर्फ एक

2011 की जनगणना के अनुसार हमावंगबुछुआ की आबादी 389 है। यह गांव मुख्य रूप से म्यांमार के चिन राज्य के पालेटवा से आए शरणार्थियों द्वारा बसाया गया है, जिन्हें स्थानीय रूप से ज़ाखै या रखाइन कहा जाता है।
शरणार्थी होने के कारण गांव के अधिकांश लोग मतदान के पात्र नहीं हैं।

एलएडीसी चुनाव से पहले मतदाता सूची के मसौदे पर चार लोगों ने अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा मांगा था, लेकिन आपत्तियों के निस्तारण के बाद केवल लालसांगबेरा को ही पात्र मतदाता के रूप में स्वीकार किया गया।

विदेशी माने जाते हैं, इसलिए वोट का अधिकार नहीं

2017 के बाद म्यांमार में संघर्ष बढ़ने पर लगभग 300 शरणार्थी इस गांव में आकर बस गए।
2019 में गृह मंत्रालय के निर्देश पर कई शरणार्थियों को निर्वासित किया गया था, लेकिन स्थिरता लौटने के बावजूद कई लोग वापस नहीं गए।
जो लोग 2017 से पहले बसे, उन्हें भी आसपास के गांव विदेशी मानते हैं, हालांकि सरकार ने उनकी उपस्थिति को लेकर यथास्थिति बनाए रखने का निर्णय लिया है।

Leave a Reply