
सुप्रीम कोर्ट ने नकली भारतीय मुद्रा रखने के आरोप में दो साल से जेल में बंद एक व्यक्ति को जमानत दे दी है। अदालत ने स्पष्ट किया कि UAPA चाहे जितनी भी सख्त क्यों न हो, अवैध हिरासत कानूनन मंजूर नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
जस्टिस विक्रम नाथ की अगुवाई वाली बेंच ने असम पुलिस को अवैध हिरासत पर फटकार लगाई। बेंच ने कहा कि UAPA की धारा 43D के तहत आरोपपत्र दाखिल करने की अधिकतम अवधि 180 दिन होती है, जिसे अदालत की अनुमति से ही बढ़ाया जा सकता है। लेकिन आरोपी के मामले में पुलिस ने दो साल तक आरोपपत्र दाखिल नहीं किया, जो स्पष्ट रूप से अवैध हिरासत है।
मामले की पृष्ठभूमि
असमी पुलिस के अनुसार आरोपी टॉनलॉन्ग कोन्याक, म्यांमार का नागरिक है और उसके पास नकली भारतीय मुद्रा पाई गई थी। पिछले साल 20 दिसंबर को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने उसे जमानत देने से इनकार किया था। सुप्रीम कोर्ट ने अब इसे खारिज करते हुए डिफ़ॉल्ट बेल का हकदार माना।
अदालत ने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो साल तक पुलिस द्वारा आरोपपत्र दाखिल न करना पूरी तरह अवैध हिरासत है। बेंच ने पूछा कि पुलिस को आरोपपत्र दाखिल करने से किसने रोका और जमानत देने में देरी क्यों हुई। अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में अभियुक्त को न्याय मिलने में देरी कानून का उल्लंघन है।
निष्कर्ष
यह फैसला UAPA के तहत भी नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी अधिकारों की पुष्टि करता है। अदालत ने यह संदेश दिया कि कानून चाहे जितना सख्त हो, अवैध हिरासत किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं।