
ब्रिटिश कोलंबिया के सिख निवासी और कनाडा बॉर्डर सर्विसेज एजेंसी (CBSA) में लंबे समय तक सुपरिंटेंडेंट पद पर कार्यरत अधिकारी संदीप सिंह सिद्धू ने भारत सरकार के खिलाफ ओंटारियो सुपीरियर कोर्ट में मुकदमा दायर किया है। उनका आरोप है कि भारत से जुड़े ‘राज्य-प्रायोजित दुष्प्रचार अभियान’ ने उनकी छवि को पूरी तरह धूमिल कर दिया और उन्हें सम्मानित अधिकारी से भगोड़े आतंकी के रूप में पेश किया गया।
क्या है मामला
सिद्धू का कहना है कि अक्टूबर 2024 से भारतीय मीडिया ने उन्हें कनाडाई सरकार के पेरोल पर काम करने वाले खतरनाक आतंकी के रूप में दिखाना शुरू कर दिया। यह दुष्प्रचार केवल इंटरनेट तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उनके पड़ोस, कार्यस्थल और परिवार तक पहुंच गया। परिवार को घर छोड़ना पड़ा और बेटी के स्कूल को भी खतरे का डर सताने लगा।
सिद्धू की जिम्मेदारी और आरोप
करीब 20 वर्षों तक CBSA में सेवा देने वाले सिद्धू, सुपरिंटेंडेंट पद पर रहते हुए सीमा कानून लागू करने, संदिग्धों की निगरानी और अवैध सामान रोकने जैसे काम करते थे। अक्टूबर 2024 में भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने उनके खिलाफ आरोप लगाए, जिसके आधार पर भारतीय मीडिया ने उन्हें ISYF का सदस्य, कथित भगोड़ा आतंकी और 2020 में बलविंदर सिंह संधू हत्या का मास्टरमाइंड बताया।
सिद्धू ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि वे कभी पाकिस्तान नहीं गए, किसी आतंकी संगठन से जुड़े नहीं और संधू की हत्या में उनका कोई संबंध नहीं है।
दुष्प्रचार का असर
सिद्धू के वकील ने बताया कि यह अभियान सिद्धू को तोड़ कर रख दिया। 20 साल समर्पित किए गए करियर पर भरोसा खत्म हो गया। CBSA ने जांचें कीं, जिनमें पॉलीग्राफ टेस्ट भी शामिल थे, लेकिन आतंकवाद के आरोप साबित नहीं हुए। शुरुआत में सिद्धू को फ्रंटलाइन ड्यूटी से हटाया गया, बाद में बहाल कर दिया गया।
निष्कर्ष
सिद्धू का यह मुकदमा कनाडा में भारत के खिलाफ पहले बड़े स्तर के दुष्प्रचार मामले के तौर पर देखा जा रहा है। यह मामला राज्य-प्रायोजित दुष्प्रचार और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा पर हमला जैसे संवेदनशील मुद्दों को उजागर करता है।