
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि किसी व्यक्ति का मृत्यु से पहले दिया गया बयान सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता कि बयान और मौत के बीच समय बीत गया हो। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे बयान को मान्य होने के लिए मैजिस्ट्रेट की मौजूदगी या डॉक्टर की मानसिक स्थिति प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन. के. सिंह की बेंच ने कहा कि मृत व्यक्ति का बयान, जो उसकी मौत या मौत के कारण की घटनाओं से संबंधित हो, CrPC की धारा 161 के तहत पुलिस अधिकारी को दिया गया हो, तो Evidence Act की धारा 32(1) के तहत स्वीकार्य और प्रासंगिक होगा।
मामला
एक मामले में महिला के पति पर आरोप था कि उसने अपनी पत्नी को इसलिए गोली मारी क्योंकि उसने लड़का नहीं, बल्कि लड़की को जन्म दिया। पति ने महिला के मृत्यु से पहले दिए बयान की वैधता चुनौती दी। उनके अनुसार यह बयान मैजिस्ट्रेट की मौजूदगी में रिकॉर्ड नहीं हुआ था और मानसिक स्थिति का मेडिकल प्रमाण नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट ने पति की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि ये दलीलें बिल्कुल बेमतलब हैं।
कोर्ट का आदेश
कोर्ट ने महिला के माता-पिता की अपील स्वीकार कर दी और उनके ससुराल वालों के खिलाफ भी कार्रवाई शुरू करने का आदेश दिया। महिला के मृत्यु से पहले के बयान और उसकी नौ साल की बेटी के बयान के आधार पर पति और ससुराल वालों पर कानूनी कार्रवाई की अनुमति दी गई।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आवश्यक प्रमाण और न्याय की दिशा में अहम कदम है। यह मृतक के बयान को गंभीरता से लेने और कानून के दायरे में उसका सही इस्तेमाल सुनिश्चित करने का संदेश देता है।